सुलझा देती
क्षण मे मेरे
असमंजस को,
तुम होती तो
सहला देती
मेरे अन्तर के
क्रंदन को,
तुम होती तो
मुझे सिखाती
खाना कैसे खाते हैं,
तुम होती तो
मुझे बताती
नमस्कार कब करते हैं?
तुम होती
देख ही लेती
मेरी बिगाड़ी
आदत को,
तुम होती
हाथ बढ़ाती
मेरे लिए
निवारण को,
तुम नहीं रही
अब राम ही हैं
सब मुझको
राह बताने को!
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