Monday, 29 May 2023

फ़ासला

ये तुम्हारे शहर से 
हमारे शहर तक 
बहुत फासला है,
बहुत गाँव हैं 
जिसमें सोने उगे हैं, 
बहुत से शहर हैं 
जो सोकर जगे हैं,
पूलो के कल-पुर्जे 
टूटे पड़ें हैं,
सड़कें हैं कितनी
जो उजड़े हुए हैं,
इन राहों पे चलने के 
बहुत आकड़े हैं!


बहुत से घरों के 
चौखट हैं ऊँचे,
कितने मोहल्लों के 
दीवार कूदें,
चेहरे बहुत हैं 
जो मुँह फेरते हैं,
बहुत से जुबां हैं 
जो कुछ का कुछ 
बोलते हैं,
इन दिलों मे झांकने के 
कम ही आसरे हैं!

No comments:

Post a Comment

सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...