ये तुम्हारे शहर से
हमारे शहर तक
बहुत फासला है,
बहुत गाँव हैं
जिसमें सोने उगे हैं,
बहुत से शहर हैं
जो सोकर जगे हैं,
पूलो के कल-पुर्जे
टूटे पड़ें हैं,
सड़कें हैं कितनी
जो उजड़े हुए हैं,
इन राहों पे चलने के
बहुत आकड़े हैं!
बहुत से घरों के
चौखट हैं ऊँचे,
कितने मोहल्लों के
दीवार कूदें,
चेहरे बहुत हैं
जो मुँह फेरते हैं,
बहुत से जुबां हैं
जो कुछ का कुछ
बोलते हैं,
इन दिलों मे झांकने के
कम ही आसरे हैं!
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