मुझमें झाँक लो
ज़रा इत्मीनान से,
आज अपनी
जुल्फों को मत बनाओ
मुझको सवार दो
अपनी दीदार से,
आज बेनक़ाब होना
अपने किरदार से,
कभी मैं भी तो देखूँ
तुम्हें अपने हिसाब से,
आज अंधेरा रहने दो
कमरे मे प्यार से,
मुझे जगमगाना है
अब हुस्न-ए-बहार से,
चकनाचूर होने दो मुझे
कतई बेकरार से,
मै देख पाऊँ तुम्हें
खुलते हिजाब से,
मुस्कान की लिहाफ
खुशबू बहार की,
और किसे देखेंगे हम
खिलते गुलाब से!
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