Friday 28 June 2024

बातों का मतलब

इन बातों का 
कुछ मतलब नहीं है,
बेमानी हैं सब 
कोई तर्कसंगत नहीं हैं,
तुमको लगा की 
हमारी खामोशी तुम हो,
तुम्हारे होने से पर
हमें कोई उल्फत नहीं है,

यह दूरी, ये धूरि 
ये समय के थपेड़े,
ये सरगम के टुकड़े 
जो किस्मत ने छेड़े,
ये लंबी सी चुप्पी 
विचारों के रेले,
ये मेरे फ़ैसले हैं
कोई उलझन नहीं है!

Monday 24 June 2024

आधार

कुछ घूमने फिरने के 
थोड़ा बाद 
आ बैठूंगा उस डाल 
जहां पर मेरा है आधार,
आधार मेरा राम 
घर द्वार मेरे राम,
आसमान बहुत विस्तार 
पर पंखों में श्री राम!

कुछ प्रश्न

मेरे कुछ प्रश्न 
जिनका उत्तर 
तुमको देना नहीं है,
मुझको जानना नहीं है,

मैं पूछ लेता हूं 
तुम बता देती,
मैं अपनी कुछ 
हसरतें जता देता हूं,
तुम अपनी नई हद 
बना लेती हो,

मेरे मन की बात 
कुछ छोटे उल्लास 
मैं उन प्रश्नों में 
छुपा देता हूं,
मैं वही फिर से प्रश्न 
दुहरा देता हूं!

लोग

लोग बनते हैं 
कुछ रह रहकर,
कुछ सुनकर 
कुछ कहकर,
कुछ कीमतों के 
बोझ में दबे हुए,
कुछ सत्य से 
दूर तक चले हुए,

कभी खाकर 
एक रोटी,
कभी भूखे 
पेट सोकर,
कभी खुद पर 
जोर से हँसकर,
कभी किसी से 
छुपकर रोकर,
साधारण से 
और कमतर,
कभी खुद 
से भी बेहतर
लोग बनते हैं,

एक जीवन 
के ऊपर,
कोई जरी लपेटकर 
चमक और मुस्कान 
अपने गले लगाकर 
लोग बनते हैं!

Tuesday 18 June 2024

देखी देखा पुण्य

तुमको चाहूँ तो पहले क्या 
क्या बाँध लूँ तुमको,
तुमको छुपा लूँ औरों से 
कुछ साध लूँ तुमको,
करने नहीं दूँ वो तुम्हें 
जो है तुम्हारा ध्येय,
औरों को पाने भी नहीं दूँ 
तनिक तुम्हारा स्नेह,

तुम पर वही कविता लिखूँ 
जिसके बोल मेरे घर के हों,
सीमा में तुमको ऐसा रखूं 
कल्पना बिना पर के हों,

तुम रहो मेरी परछाई 
मेरी अंधकार की पिपासा,
खो दो वह वजूद जो की 
जिसको जीवन में बहुत साधा,

तुम्हारी आंख में काजल को 
लिखूँ ऑफिस की स्याही से,
जुल्फों के अँधेरों को जकड़ लूँ 
किसी क्लिप की मेहरबानी से,

मैं पहले देख लूँ रस्ते 
और सहूलियत,
पहले वाकिफ़ करूँ खुद को
जहां की असलियत,
मैं बाजार को समझूँ 
फिर करूंगा इश्क,
देखी देखा पाप 
देखी देखा पुण्य!

Thursday 13 June 2024

कातिल

खुद को कहती हो क़ातिल 
ये हुआ क्या है?
ये क्या आग है 
ये धुआं क्या है?
ये रोशनी है अँधेरों के 
कमरों में क्यूँ?
दम घोंट के दफन 
आज कब्रों में क्यूँ?

मंज़िल की थी ख्वाहिश 
दहलीज के बाहर,
अब टूटी चौखटों का
गुनाह क्या है?
अयोध्या को अपना 
समझने कब लगे?
कैकयी की चाल और 
कुटिल मंथरा क्या है?
जन्म-भूमि तुम्हारी 
द्वारका तक है विस्तृत,
गोकुल का बचपन 
वृंदावन से जग तृप्त,
कुरुक्षेत्र की सीमा में 
कोई मथुरा क्या है?

बैठना तक नहीं 
स्टेशन पर गँवारा,
बहुतों से मिली तुम 
सभी को नकारा,
स्वाभिमान की देवी 
जब तिरंगा बनी है,
सुबह-शाम सलामी 
हर दिशा कर रही है,
धनंजय को स्वजनों की 
चिंता क्या है?
कातिल कह रहे हो 
कुरुक्षेत्र में धनुर्धर,
गांडीव उठाने में 
वेदना क्या है?

समर का समय 
जब सभी को पता है,
आशा तुम्हीं से 
तुम्हीं से कथा है,
जब पंखों को चुराने 
गई थी शिखर तक 
उड़ी आसमा में 
गिद्धों से ऊपर,
घोंसला से मुहब्बत 
बेइंतिहा क्या है?
पिंजरों में फुरकना 
बेवजह क्या है?
तूफानों से पंजे 
लड़ाने थे आए,
गोल-गोल यहीं
घूमना क्या क्या है?


 

Tuesday 11 June 2024

मर्यादा

थोड़ी हंसी तुम्हारी ले लूँ 
थोड़ा ले लूँ तुमसे रंग,
मैं तुमसे करके बात 
कुछ उठा लूँ लुप्त का संग,

कुछ दांत तुम्हारे 
सुन्दर कहकर 
आँखों से नूर चुरा लूँ,
मैं अपना तुमको 
भेद बताकर 
हमराज थोड़ा बना लूँ,

मैं आधे-अधूरे वादे तुमसे 
पूरे करने को बोलूँ,
मैं अपने घर मे तुम्हें बुला लूँ 
कुछ ना जाने की बात कहूं,
मैं कैसे तुमको दामन में 
अपने दामन सा कर लूं?

Monday 10 June 2024

ହୃଦୟ

କର୍ଣ୍ଣ ଶୁଣିବା ପାଇଁ ଗୀତ ଗାଇବ
ମୁଁ ଅଙ୍କ ରଖିବା ପାଇଁ 
ଦେବ ସୁନ୍ଦର ଫୁଲ,
ନେତ୍ର ଅଞ୍ଜନା ପାଇଁ 
ମେଘ କୁ ଆଣିବା,
ତାହାର ମହିମା କହିବା ପାଇଁ 
ପର୍ବତ କୁ ଚାଡ଼ିବା,

ମୁଁ ଖୁଶି ରଖିବା ପାଇଁ 
ତାହାର ମୁଖ ର ଉପରେ,
କ୍ଷିତିଯେ ରେ ବି ବଡ 
ମୁଁ ଖିଚିବ ଲହରେ,

ମନ ରଖିବା ହେତୁ 
ତା'ର ସବୁ ରେ ପ୍ରଥମ,
ମୋଦୀଙ୍କୁ ଡାକିବା
ମୁଁ ବନାଇବ ମିନିଷ୍ଟର,

ଯେମିତି ବି ହବ
ମୁଁ ସବୁ ଚେଷ୍ଟା କରିବ,
ତାହାର ହୃଦଯ କୁ
ମୁଁ ହର୍ଷ ରେ ଭରିବ!

दाम

चुकाते हैं अपना दाम 
सब अपने दामन के दाग,
मिटाते आँसुओं से भिगोकर 
अपने आँगन लगाते हैं 
अपने कांटों से पुष्पित डाल,

अपने जुबान की
कभी आदतों की खुद,
वो बुझाते हैं 
खुद के लगाए आग,
गाते हैं अपने राग 
और पाते हैं 
अपने किए का भाग,

जब मोल लेते हैं 
किसी की जिंदगी से रंज 
और बदले में उनको सुनाते तंज
फिर खुद ख़लिश सूने महल में 
रह कर पूरे सन्न,
खुद ही भरते नीर 
और खुद जुटाते अन्न,
यह और के नहीं काम 
हमारे कर्म के ही दाम!

Sunday 2 June 2024

जनरल में लड़कियां

समान्य डिब्बे में 
कैसे बैठेगी और 
यात्रा करेंगी 
कोई बेटी, 
किसी की साथी?

समान्य है 
तो ढेर सारे 
लोग जाने वाले,
सामान्य हैं 
कंधों पर बहुत 
बोझ ढोने वाले,

किसी और के 
शहर मे
खाना बनाने वाले,
मनमौजी काम करने 
और घर को जाने वाले,
ज़मीन पर सोने वाले 
और मुस्कराने वाले,

बेटियाँ तो पहले से 
घर की बनी चिराग,
जल कर करती रोशन 
चूल्हे की भूख की आग,
लड़कियों का जीवन 
घर मे ही सामान्य!

नजदीक

कितना नजदीक 
हूं घर के मैं,
कितनी समय की 
सीमा है,

कितनी पहले प्लानिंग 
कब होगा निकलना,
कौन हमारा साथी 
कैसी होगी राह?

किसकी कितनी सेवा 
किससे कितना वेतन,
कौन है केंद्र, कौन-सा राज्य 
किसकी भाषा 
कितना लेन- देन,

किसके आदर्श
किसकी मिसाल,
कौन से तरीकें
कितने दोस्त 
कौन पराया,

ज़िम्मेवारी किसकी 
किसका कितना संकल्प,
घर से आने जाने का 
कौन-सा सहज विकल्प?

जो है नही

ऐसी चमक, ऐसी खनक  जो है नही, देखने से ढ़ल जाती है सुनी हुई धुन सादी है, मनोहर गढ़ी, भेरी कही योगी की तंद्रा, भोगी की रंभा  कवि की नजर मे सुम...