Tuesday 11 June 2024

मर्यादा

थोड़ी हंसी तुम्हारी ले लूँ 
थोड़ा ले लूँ तुमसे रंग,
मैं तुमसे करके बात 
कुछ उठा लूँ लुप्त का संग,

कुछ दांत तुम्हारे 
सुन्दर कहकर 
आँखों से नूर चुरा लूँ,
मैं अपना तुमको 
भेद बताकर 
हमराज थोड़ा बना लूँ,

मैं आधे-अधूरे वादे तुमसे 
पूरे करने को बोलूँ,
मैं अपने घर मे तुम्हें बुला लूँ 
कुछ ना जाने की बात कहूं,
मैं कैसे तुमको दामन में 
अपने दामन सा कर लूं?

No comments:

Post a Comment

जो है नही

ऐसी चमक, ऐसी खनक  जो है नही, देखने से ढ़ल जाती है सुनी हुई धुन सादी है, मनोहर गढ़ी, भेरी कही योगी की तंद्रा, भोगी की रंभा  कवि की नजर मे सुम...