क्या बाँध लूँ तुमको,
तुमको छुपा लूँ औरों से 
कुछ साध लूँ तुमको,
करने नहीं दूँ वो तुम्हें 
जो है तुम्हारा ध्येय,
औरों को पाने भी नहीं दूँ 
तनिक तुम्हारा स्नेह,
तुम पर वही कविता लिखूँ 
जिसके बोल मेरे घर के हों,
सीमा में तुमको ऐसा रखूं 
कल्पना बिना पर के हों,
तुम रहो मेरी परछाई 
मेरी अंधकार की पिपासा,
खो दो वह वजूद जो की 
जिसको जीवन में बहुत साधा,
तुम्हारी आंख में काजल को 
लिखूँ ऑफिस की स्याही से,
जुल्फों के अँधेरों को जकड़ लूँ 
किसी क्लिप की मेहरबानी से,
मैं पहले देख लूँ रस्ते 
और सहूलियत,
पहले वाकिफ़ करूँ खुद को
जहां की असलियत,
मैं बाजार को समझूँ 
फिर करूंगा इश्क,
देखी देखा पाप 
देखी देखा पुण्य!
 
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