यहां चली थी गोलियां,
यही लगी थी जनमानस मे
इंकलाब की बोलियां,
यही कूद के जान गवाई
कुंवे मे भी लोगों ने,
यही बहुत सी गोली खाई
आज़ादी के सिपह–सलाहकारों ने
आज इसी पर लड़ बैठे हैं
कुछ लोग और सरकार बहुत
चला रहे हैं गोली, पत्थर
बोली के हथियार बहुत
कोई इसको याद समझकर
छोड़ दो कहता छोड़ दो,
कोई यादों को ले जाकर
बांट दो कहता बांट दो
कुछ मत देखो और
दिखाओ मत
जो देख सके तो देख ले,
कुछ मूर्ति लगाकर
चाहे इसकी अमरता
पूरी घेर लें
यही है जलियांवाला बाग
यहां उठती है आवाजें
यहीं से शुरू होता है परिवर्तन
कोई चाहे न चाहे।
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