Sunday 5 September 2021

लोट पोट

आखिरी बार कब
हंसे थे खुलकर?

ऐसा की जैसे
गूंज उठी था घर
बादलों की गरज
की तरह,

ऐसा की लगा हो
की कोई कह न दे पागल
और उठा ले जाए पागलघर,

ऐसा की जैसे
दिल की धड़कने गई हों बहुत बढ़
और आ गई हो सांसे हलक तक,

ऐसा की खांसी आ गई हो
आंख मे भर आया हो पानी,
और गाल और मुंह लाल
होंठ गए हो सूख
मुंह से फिसलकर
नाक से निकली हो थूंक।

ऐसा की नाक बह गई हो
जैसे सर्दी लग गई हो
और मुंह मे घुस गई हो
और ठुड्ढी पर बह गई हो
लार से मिलकर।

ऐसा की डर ही डर गया है
और याद आ गए हों
मीराबाई, सूरदास और कबीर
अंग्रेजों के सामने गांधी और
भगत और फंदा चूमते बिस्मिल और सुखदेव
और फिर रो दिया हो तुमने
अंगूठा दिखाकर
झूम गए हो जैसे 
राम के साथ वन जाकर
और हनुमान जी की पूंछ से लटककर।

ऐसा की जैसे
दिमाग की नसों मे
खून गया हो एक साथ दौड़
और एक–एक परमाणु मे
लग गई–सी हो कोई होड़
की कौन ले जाए ऑक्सीजन को
एक–एक न्यूरॉन तक
और हर एक कोलेस्ट्रॉल
गया हो गल
बीपी की बीमारी गई हो चल
सारा नशा एक साथ
हो गया हो उफन।

ऐसा की जैसे
तुम हो गए हो जमींदोज
और जमीन पर लोट कर
रहे हो एड़िया रगड़
चाहते हो कोई ले
तुम्हारा हाथ पकड़
और तुम्हे न हो सका कोई संभाल
कपड़े हो गए हो गए हों गंदे
बिना कोई फिकर
दोस्त रिश्तेदार और परिवार मे
बचा ही न हो कोई अंतर
दुश्मन ही न हो कोई
अफगानिस्तान भी लग रहा हो घर
मजहब और जात से
तुम पा गए हो खुद को बाहर।

ऐसा कब हंसे थे आखिरी बार
और किसके साथ?
और कब हंसोगे
आखिरी सांस के पहले,
कब बीतेगा तुम्हारा आजकल,
कब ऐसा हंसोगे की
लगे की आखिरी बार ?



No comments:

Post a Comment

दो राहें

तुम चले सड़क पर सीधा  हम धरे एक पगडंडी, तुम्हारे कदम सजे से  हम बढ़े कूदते ठौर, तुमने थामी हवा की टहनियां  हम बैठे डिब्बे में संग, तुम संगीत...