खुला हुआ है,
और उसकी
हर डाली
अलग–अलग होकर
झूमती है,
पूरा पेड़ ही
मस्त हो जाता है,
बरसात मे,
सबकी किस्मत
उसके हाथ मे,
सब अपने मे मगन
कोई पानी से,
कोई हवा से
और कोई उड़ाकर घोसालों
आज है उन्मुक्त,
कल का सूरज,
वो ही देखेगा
जो आज पूरा झूम लेगा
लग हवा के साथ,
वो टूट जाएगा
जो अकड़ कर
रह गया होगा,
पर अमरूद का पेड़
बचा रहेगा,
बची टहनियों मे
फिर अमरूद लगेंगे,
मिलके सारी डालियां
बनकर साथ रहेंगी
अमरूद का पेड़।
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