Wednesday 22 September 2021

अधूरा

कुछ अधूरा है
जिसे कर रहा हूं पूरा
अपनी कलम की नोक से,

रह–रह कर
खींच देता पाहियां,
भर देता माथे
‘ध’ और ‘थ’ के,
भूलकर या जानकर मै,
और कर देता पूरा गोल
‘a’ और ‘o’ को,

रंग भर देता
‘b’ और ‘क’ के पेट मे,
अलग कर देता
बंद कर कोष्ठक मे
कुछ पुराने से
नए topics को

अधूरा है शब्द या 
व्यवहार मेरा,
कमी है लिखावट मे
मेरी तब नही थी सही
और अब नही लगती सही

अधूरी है कौन सी दास्तान 
मेरे जीवन की
जिसे अपने ढंग के
नए रंग ओढ़ाकर,
कर रहा है मन सुसज्जित
बार–बार, बार–बार।

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