जिसे कर रहा हूं पूरा
अपनी कलम की नोक से,
रह–रह कर
खींच देता पाहियां,
भर देता माथे
‘ध’ और ‘थ’ के,
भूलकर या जानकर मै,
और कर देता पूरा गोल
‘a’ और ‘o’ को,
रंग भर देता
‘b’ और ‘क’ के पेट मे,
अलग कर देता
बंद कर कोष्ठक मे
कुछ पुराने से
नए topics को
अधूरा है शब्द या
व्यवहार मेरा,
कमी है लिखावट मे
मेरी तब नही थी सही
और अब नही लगती सही
अधूरी है कौन सी दास्तान
मेरे जीवन की
जिसे अपने ढंग के
नए रंग ओढ़ाकर,
कर रहा है मन सुसज्जित
बार–बार, बार–बार।
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