Tuesday, 31 October 2023

अधोगति

ऊर्जा का दोलन 
ऊपर जाता आवेग,
अधोगति जब होती 
बिलख रहे सम्वेद,

कामनाएँ उड़ के जाती 
आसमान की ओर,
पीछे-पीछे करती घर्षण 
चलती शोणित की डोर,
ऊर्जा की उष्मा उठती 
तरल-तरल करती हिलोर,
राग-रंज अनमोल,
आसक्ति अति घोर 

फिर आती ठंडी होकर 
लेकर माटी के घोल,
टप- टप, कंपन का शोर 
बैठा जाता मन 
डर का माहौल,
इत ओर, उत और
सभी की नज़रों से चोर
ऊर्जा की आपा धाबी 
यह कैसा व्यसन का मोर 
नाचने को व्याकुल 
ऊपर नीचे चारों ओर!

Monday, 30 October 2023

खादी

खादी 
विचार है 
आचार है,
संकल्प है 
निर्विकल्प है,
तेज है
प्रकाश है,
पवन है 
उल्लास है,
अस्त्र है 
ये शस्त्र है,
शास्त्र है 
ब्रह्मास्त्र है,
मुस्कान है 
अट्टहास है,
मिट्टी से 
आत्मा तक 
खादी विकास है!


Thursday, 26 October 2023

शिकायत

हमसे दूर होने की
उनको खूब मतलब है,
हम उनको अब बड़े 
बेरहम दिखाई देते हैं,
मुझसे होकर दूर भी 
वो परेशान रहते हैं,
उनको आईनों में भी अब 
केवल हम दिखाई देते हैं,
नमस्कार नहीं? दुआ-सलाम नहीं 
नज़रे भी मिलाते नहीं,
दिल दुखाने वालों को हम 
बेरहम दिखाई देते हैं,
हमारी शिकायतों पर वो 
अफ़साने कई लिख सकते हैं,
मैख़ानो मे उनके कोई हम 
धर्म दिखाई देते हैं,
इस्तेमाल कर रहे हैं 
हमसे दूर जाकर भी,
उनको हम बीमा की 
रकम दिखाई देते हैं,
और मुँह फूला लेते हैं 
हमसे बात करके चार,
उनको हम ही मीठा-सा
बबल- ग़म दिखाई देते हैं,
हमको दर्द होता है 
उनकी बात सुनकर भी,
तो दिल को कहाँ ये 
ज़ख़्म दिखाई देते हैं,
हम फिर चले जाते हैं 
उनका बैग ले आने,
इन ज़ख्मों के वही तो 
मरहम दिखाई देते हैं,
जी तो कर्ता है की 
वो गुमान तोड़ दें,
पर हमको कहाँ वो 
दुश्मन दिखाई देते हैं?
उनके शिकवो का जवाब 
हम दें भी तो कैसे,
अब महफ़िलों मे बहुत वो 
कम दिखाई देते हैं,
और जिनके कंधों पर 
वो अपना सर झुकाते हैं,
वो हमारे दोस्तों मे बड़े ही 
अहम दिखाई देते हैं,
और फिर से आयेंगे 
जब मुशायरों मे वो,
तब तलक अब चलो 
कुछ कलम चलाई लेते हैं!



Monday, 16 October 2023

पैमाना

पीने के बाद गालियों मे
सनम दिखते हैं,
ज़िंदगी की तन्हाइयों मे
कोई मरहम दिखते हैं,
उनकी मोहब्बत का
इम्तिहान क्या लें,
आईनों मे भी जिनके 
अब हम दिखते हैं,

मुर्ख कहकर बुलाते हैं मुझे,
हम उनको बड़े बेरहम दिखते है,
मधुशाला के झरोखों-से
तफ़तीश करते हैं,
जो हवेलियों पर औरों के 
हरदम दिखते हैं,
बदहवासी मे रिश्तों के 
गिरह खोलते हैं,
हम उनको बड़े 
बेशरम दिखते हैं,

आशिकी मे डूबने को 
हम तैयार बड़े थे,
क्यूँ उनको दिलों मे
भरम दिखते हैं,
किसको कहेंगे वो 
अपना हमसफ़र,
जहां पैमानों के फैले 
आलम दिखते हैं,

बड़े शोर सुनकर आए थे 
जिनके आशियाने पर,
वो आमने-सामने
कितने नम दिखते हैं,
उनको कैसे बताये की 
लोग छुपते बहुत हैं,
होते हैं बहुत
फिर भी कम दिखते हैं,

हम तो रोक लें दिल को
किसी कैद खाने मे,
पर ये बहके हुए 
कुछ कदम दिखते हैं,
जान भी हम लुटा दें 
इक नजर भर को जिसकी, 
गौर से और को वो 
 एकदम देखते हैं!



Sunday, 15 October 2023

अंत

मेरे जाने के बाद भी 
हम बार-बार बुलाए जा रहे हैं,
मौत तो कब की हो चुकी है 
एक मुद्दत से जलाये जा रहे हैं,

हम तो बैठे हैं मंच को 
औरों पर छोड़कर,
क्यूँ स्वागत मे सबके 
उठाए जा रहे हैं?

अब नहीं है इजाजत 
उनका नाम लेने की,
गैरों से महफ़िलों मे
आजमाये जा रहे हैं?

किसी खता के डर से 
मौन कर चुके हैं,
हम क्यूँ बोलियों से 
उकसाये जा रहे हैं?

गुलाल

यहीं लगायी तुमको होली 
यहीं सुनी प्यारी-सी बोली,
यहीं आँख के रंग थे बदले 
यहीं आसमा से मिली थी नजरें,

यहीं नहीं तुम जाने पाए 
यहीं कहीं तुम मुँह बिचकाये,
यहीं पर फैल गए थे हम 
यहीं पर सभी गुहार लगाए,

यहीं पर आना और ठहरना 
यहीं पर होता बहुत मलाल,
यहीं उड़ा था रंग गुलाल
यहीं हुआ था इश्क मे लाल!


घोंसला

हम झुकाकर नज़र चले आए
हमसे हुआ ही नहीं हौसला जोड़कर,
मधुशाला मे कैसे कदम रखते 
जहां दहलीज पर आए थे हम 
पुराना जहाँ छोड़कर,

कैसे हो नहीं नम आँख ये 
लबों का कहकशां छोड़कर,
आज होश मे देखा जब 
कमरा वो, नशा छोड़कर,

की मरहम कहाँ मिलेगा 
ऐसे लम्हों के तसव्वुर का,
किसको कहेंगे अपना 
हम अपनों का महकमा छोड़कर,

बहारों का रास्ता, 
वहाँ होकर नहीं निकलता,
उड़ जाती है चिड़िया जहां 
अपना घोंसला छोड़कर!

Thursday, 12 October 2023

संबाद

आंखों ने 
आँखों को देखा 
मुस्कुराए,
प्रेम झलक गया,
हो गया संवाद,
मैंने तुमको 
तुमने मुझको 
किया प्रणाम,
हो गया तीर्थ,
मिल गए चारो धाम,
हो गया संबाद,
भाषा नहीं जानी 
भुला दिया पहचान,
राम राम कहा,
राम राम राम,
हो गया सब काम,
पूछा नहीं कुछ 
पूछ ना था क्या?
जो जानने-समझने 
लायक था,
उसको लिया 
कुछ थाम,
बिना शब्द, 
बिन विराम,
कर लिया संबाद!

Wednesday, 4 October 2023

चोरों की बस्ती

उन बस्तियों मे 
हर तरफ एक 
जश्न-ए-गुल है,
इस तरफ क्यूँ 
हर कोई 
दबे पाँव चलता?
उस तरफ 
हर शख्स की
पैनी निगाहें,
इस तरफ 
हर आदमी 
छुप लूटता है,

उस तरफ 
सब मिलके 
सारे घेरते हैं,
इस तरफ 
अकेले मे 
बंधन जोड़ते हैं,
उस तरफ 
रातों को 
पहरा तोड़ते हैं,
इस तरफ 
दिन-रात 
सबको तोलते हैं!

Tuesday, 3 October 2023

कमरा

उस कमरे में 
अभी भी सोये हो,
अपने मिजाज़ मे
हंसते खोए हो,

तुम्हारी खुशबू है 
तुम्हारा एहसास है,
तुम्हारे कमरे मे
तुम्हारी याद है,

तुम्हारी हंसी है 
तुम्हारी आवाज़ है,
उस कमरे का अब 
तुम्हारा-सा अंदाज़ है,

तुम्हारे छुए हुए कपड़े हैं 
तुम्हारे रखे हुए अख़बार हैं,
तुम्हारे सलीके से बिछायी 
अलमारियां सजि हैं,
तुम्हारि योग निद्रा के 
लेटे हुए इतिहास हैं,

उस कमरे मे 
तुम्हारी वाली बात है!

Monday, 2 October 2023

सीनियर के पास

ले चलें तुम्हें 
सीनियर के पास,
आज देखते हैं तुमको
सीनियर के पास,
क्या कहते हो तुम 
सीनियर के पास,
आओ देखो खुद को 
सीनियर के पास!

बापू का प्रश्न

बापू के प्रश्न हैं 
की मानते हैं कैसे,
चलते हैं कैसे 
उनके पथ पर,
खोते नहीं कैसे धीरज 
देखकर उनके 
टूटते विचार,
आस पास के व्याभिचार,

मुस्कराते हार कर 
देखकर अपनी हार?
बैठे हैं जो कुर्सियों 
भूलकर बापू के आचरण?
करते हैं स्मरण 
अब बस तब जब 
होते कोई त्यौहार परब,

नहीं पाते खुद 
मे झलक उनकी 
खुद मे किसी तरह,
कैसे देते जवाब 
खुद को और 
बापू के प्रश्न पर उत्तर?
राम कैसे कहते होकर निडर?

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...