Saturday 9 July 2022

दिल्ली

दिल्ली देख के आया हूं
हवा चली थी बागों मे
गर्मी खूब थी राहों मे
ऊंचे किले मे AC थे
और इंसान घूमते मेट्रो मे,
मै राष्ट्रपति भवन मे घूमते
बंदर देख के आया हूं,

कोटा फैक्ट्री को
serious मानकर,
Exam के पहले घूम लिया
मै सिविल लाइंस के पास गया
और बाबा साहेब के साथ जुड़ा,
मै केजरीवाल के घर जाकर
वह मिट्टी छूकर आया हूं,
मै वर्षा के संग जीकर
कुछ बच्चों सा बन पाया हूं!
मै खाना खाया
खूब दबा कर,
पेट बहुत सोहराया हूं,
मै पार्क मे लेटे ही लेटे
कुछ पन्ने उड़ा के आया हूं,

एक सुलझी हुई बहन मेरी
जो बातों की है बहुत धनी,
वो सोचे बिना भी बोल दे जब
सब सोच सोच के पागल हो,
वो हंसे अगर बस देख के कुछ
सबका ही मुंह बंद होता हो,
DU के चर्चे सुनते थे
अब जलवे देख के आया हूं,
मै जैसा उसके पहले था
अब वहीं छोड़ कर आया हूं,
जब बात करूं तो मै सोचूँ 
"क्या उसके जैसा कुछ कह पाया हूं?"
सात अजूबे देखे थे
अठवा देख चकराया हूं!

मैंने दीदी की बात सुनी
जो ट्रक वाले से भी नहीं डरी,
वो बंद हो गई कमरे मे
AC हमारी तोड़ रही,
भगवान के साथ
बसों मे घूम,
मै घंटो तक मुसकाया हूं,

राजेंद्र नगर को छोड़ दिया
वो US जाने वाली है,
वो उन गुरुओं से नहीं मिली
जिसने उसकी सब जानी है,
मै राज कचौरी खा आया
और गोलगप्पे का स्वाद लिया
मै नहीं तुम्हारा हाथ धरा
इस बात को मै पछताया हूं!

किट्टू खेला करती है,
और कुत्तों से भी लड़ जाती,
वो डर जाती है छूने से
पंजे मार के हट जाती,
आकाश, सूरज और बादल
के भी मन मे बस जाती,
वो washing–machine
पर सोती है,
और मांस नोंच कर खाती है,
वो सोती है सब भूल बैठ
वो चूहों पर ललचाती है,
मै उसको देख मोहित था
मै उससे हाथ मिलाया हूं!

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