Sunday, 26 February 2023

मूसल

राम का मूसल 
राम ओखली,
राम जी दाना 
राम चोकरी,
राम समस्या 
बनकर आए,
राम पीसकर 
राम मिलाए,
राम सुगंध 
फैलता जाए,

राम ही आखर 
राम ही पोथी,
राम कलम और 
राम सियाही,
राम सोचकर 
राम लिखाए,
राम पढ़ाए 
राम छपाये,
राम की गाथा 
राम बताये,

राम ही बूँदें 
राम ही बारिश,
राम ही बिजली 
राम वारिद,
राम जी वायु 
राम ज़लज़ला,
राम ही बाँध 
राम उफान,
राम के नद मे 
बहता जाए,
राम बचाए 
जो राम डुबाये !

Saturday, 25 February 2023

कीचड़

कीचड़ कितना प्यारा है 
उसमे सुअर लोटा है,
सूअर बड़ा आज़ाद है 
पूरा उसका राज्य है,

वह कीचड़ मे ही खा लेता 
वह कीचड़ मे ही नहा लेता,
कीचड़ मे ही हग देता
कीचड़ से ही लग लेता,

कीचड़ को बिछा लेता 
और कीचड़ को ओढ़ लेता,
कीचड़ को सूंघते वाला 
कीचड़ को वो पा लेता,

मानव सुअर की भाति
खोजना चाहता आजादी,
चरण छोड़कर हनुमत का 
गले बांधता बर्बादी,

बाहर-बाहर भटकाती
यह शरीर है अकुलाती,
मृग-मरीचिका दौड़ाती
राम नाम ठौर दिलाती 
रघुनाथ हृदय की आज़ादी!

Thursday, 23 February 2023

बड़ाई

जिनके सामने किया कुछ 
उनको ही है समझ,
जिनके दिखे नहीं 
उनको कैसा फरक?

बात बिना किए, 
बताये बिना कहे,
जिसको दिया सिखा 
उसके लिए बड़ाई,
और को साधो मौन
यह बात मे सचाई!

घबराना

सब घबराएं 
तुम मत घबराना,
ऊँची आवाज मे बोले 
और गरम-गरम मुँह खोले 
गरज-गरज कर हाथ उठा दे,
मुट्ठी मे तलवार उठा दे,
तुम कभी नही चिल्लाना,

राम नाम दुहराना 
और बहुत मुस्काना,
अपने शरीर पर काबु रखना ,
नाहक न फट जाना,

सब राम खुदा के बच्चे 
सब हनुमान के अच्छे 
इस बात का क्या छुप पाना?

तुम राम नाम फैलाना 
तुम राम-कृपा को पाना,
आएगा एक दिन
राम के द्वार 
खड़ा ये ज़माना,
राम का जलेगा दीप
राम का होगा गाना!

बनारस धाम

क्या तुम भी 
बनारस मे रहते हो
वहाँ गँगा माँ को
जानते हो,
वहीं काशी विश्वनाथ हैं
वहीं हर-हर महादेव हैं
वहीं बहती है वरुणा
वहीं फैली है अस्सी
वहीं धूप निकलती है
गङ्गा उस पार से
वहीं संकट-मोचन हैं
वहीं काशी के कोतवाल भी
क्या वहीं पर कहीं
तुम भी नहाते हो?
कहीं तुम भी वहाँ
मुक्ति को कण्ठ लगाते हो?

वहीं थोड़ी सी ज़मीन है
तुम सर लड़ाते हो?
किसी के लिए 
तुम रास्ता हटाते हो
किसी और की दीवार पर
घर उठाते हो
विश्वनाथ के धूल मे
विश्व क्यूँ बनाते हो?

वहीं थोड़ा-सा आसमान है
उसपर नज़र गड़ाते हो
कोई अप्सरा है गली मे
तुम लुभाते हो
अब कितनी जातियों को
खुद पर सजाते हो
विश्वनाथ को ही 
ओढ़ पाते हो?
तुम बनारस मे 
मानस गाते हो 
गुनगुनाते हो
या कुछ छोटी-छोटी 
बातों पर लड़-कट जाते हो
बनारस कि गलियों मे
किस तरफ घर बनाते हो
तुम बनारस मे ही रहते हो?

Tuesday, 21 February 2023

भरत

जो है और 
जो होने वाला है,
जो जन का है 
जो राम का है,
जो समझ गए 
जो करना है,
उनके मध्य हैं भरत!

स्थिरता और 
विग्रह के मध्य,
खादी और 
मील के मध्य,
कुर्ता और 
शर्ट के मध्य,
सृजन और 
प्रलय के मध्य,
भक्ति और 
प्रणय के मध्य,
हैं अयोध्या के
संत भरत!

कर्म

राम सुबह-सुबह लोहा 
सेक रहे, कूट रहे 
और बना रहे एक
छेनी-हथोड़ा,

राम-अंगीठी जला रहे,
रोटी सेक रहे 
चावल चढ़ा रहे,
राम खाना बना रहे,

राम पार्क मे हैं 
सूर्य नमस्कार करते,
Morning walk करते,
आगे चलते, पीछे हटते,
प्राणयाम करते,

राम कुड़ा उठाते 
राम सफाई करते,
राम फेरी वाला बन 
अपना खोमचा 
तैयार करते,

राम ठेला ढकेलते
राम गाड़ी निकालते,
राम रिक्शा निकालते
राम बकरी-सुअर चराते
राम बंशी बजाते,
राम गाय हांकते

राम बैलगाड़ी पर 
समान लादते,
राम अपनी कमर पर 
बंदूक बांधते,
टोपी लगाते 
सितारे सजाते,
राम रात भर काम कर 
सुबह घर जाते,

सुबह सुबह राम 
चिड़ियों के संग 
कुलकुलाते,
कुत्ते-बिल्लियों संग 
कुलांचे मारते,
राम कण-कण मे
दिख जाते,
आते-जाते!

Tuesday, 14 February 2023

दीवार

है इक दीवार
मेरे घर के उस पार,
उसके दरवाजे के
मुझे पार जाना है,

वहीं जहां, 
लड़ाइयां हुई 
भाई और भाई मे
वहीं जहां 
तलवारे खींची 
मेरे ही परजाई ने,
वहीं जहां बिरादर मेरे
वर्षों से ही रहते है,
वहीं जहां पर
चाचा मेरे
तकिया लेकर सोते हैं,

वहीं तो बचपन में मैने
फर्श बैठकर खेला था,
वहीं पे आते थे दादा
तो गोद में उनके कूदा था,
वहीं बना था मेरा पहला
मित्र जो मेरा भाई था,
वहीं थे नंगे घूमे दोनो
वहीं तो कहीं नहाए थे,

आज उन्हीं गलियारों मे
चक्कर एक लगाना है,
गेट पे उसके खड़े हुए
बाहर कहीं ले जाना है,
दीवार के उस पार जाना है!
 

Monday, 13 February 2023

उतार–चढ़ाव

मैं घटता है या बढ़ता है,
यह आगे पीछे करता है
कोई रोक रहा तो सोचा क्या
कोई लड़ा–भिड़ा तो रोका क्यूं?

राम नाम का कर प्रसार
मन अपने ऊपर चढ़ता क्या?
समझाता किसे और क्या कहता
यह पैर पे झुककर, उठता क्या?

रुक जाता तो पा जाता ये
राम नाम जो जपता क्या?
मन कुछ न तो हो जाता
राम नाम की चर्चा क्या?

मन राम राम में रमा रहे
राम से लड़ता भिड़ता क्या?
राम की सांस से करता सेवा
मैं राम नाम से हटता क्या?

जो हो सकता वो हो जाता
राम को कमतर करता क्यों,
मैं राम को गले लगा लेता
फिर राम नाम डरता क्यूं?

Thursday, 9 February 2023

खत

मेरे नाम का कोई
गुलाब आएगा,
मेरे तकिए पे फिर से 
वो ख्वाब आएगा,
मैं सोया नहीं हूं
बस नाटक कर रहा हूं,
मेरे पता है तुम्हारा
लिहाफ आएगा,
मै दौड़ जाऊंगा
बावड़ी पर 
रात के अंधेरे मे,
जब खत का मेरे
कुछ जवाब आएगा,

कोई संदेश 
लिख दोगी तुम 
मेरे नाम पर गुमशुदा,
मेरे इंतजार का भी
इंकलाब आएगा,
मै मन मसोसता हूं
हर दिन बीत जाने पर,
मेरे जज्बातों का भी 
सैलाब आएगा,
लिख रहा हूं बातें 
दिल की कलम चबाकर,
तुम्हारा खत पढ़कर ही
अब करार आएगा,
हवाएं चल रही हों जब
और छत पर अकेली हो
तुम्हे मेरा ही तो 
खयाल आएगा,
खत मैने लिखा है
जुनून की हद में,
तुम्हारी नज़र का 
कभी तो खिताब आएगा!

Monday, 6 February 2023

आधी धूप

आधी धूप थी
चेहरे पर,
आधी आंखें बंद
आधी धूप थी
पैरों पर,
आधी छतरी बंद,
आधी धूप थी
रास्ते पर
आधी बस्ते बंद,
आधी स्कूल
के खुलने पर,
आधी स्कूल हो बंद,
आधी पड़ी 
दीवारों पर,
आधी पड़ी जमीन,
आधी धूप 
बालकनी में
आधी खिड़की पर,
आधी आई 
कमरे मे,
आधी कुर्सी पर,
आधी पड़ी 
हिमालय पर
आधी गंगा पर,
आधी मम्मी–पापा पर
आधी बच्चों पर,

आधी धूप सेकते थे
आधी धूप बचाते थे,
आधा सत्य चाहते थे
आधा झूठ सजाते थे,

बच्चे स्कूल जो जाते थे
धूप से ही बतियाते थे,
सुबह आंख अधूरी खुलती
तब धूप को ही गुसियाते थे,

हम स्कूल से आते थे
पीपल नीचे रुक जाते थे,
आधी धूप तो लगती थी
और आधे से बच जाते थे,
और गिलहरी–गौरया की
किस्मत देख मुस्काते थे!

Sunday, 5 February 2023

किरदार

किरदार है मेरे मन
वो पढ़ती है मेरी कविता
और मुस्कुराती है,
वो सुनती है 
मुझसे सबकुछ
और बहुत कुछ बताती है,

किरदार मेरी आदतों–सी
ढल जाती है,
मेरी चलती चाक पर
मूर्ति बनती है,
मेरे गांधीजी की पूजा
मुझसे ज्यादा करती,
मेरे शहर कि नदियों पे
मेरे संग किनारे जाती,
मेरी गीत लिखकर
मुझसे ही लय मिलाती,

श्वेत–वर्णी, कोमल
वीणा मधुर सुनाती,
हंसती खेलती है
वो मुझसे जुबां लड़ाती,
वो मुझसे नज़र मिलाती
वो मुझको बहुत चिढ़ाती,
वो मेरी नज़र मे देवी
वो मेरा है सर झुकाती,

वो लिखती है खत मुझे
मुझे पूरा करे वहां भी
मुझपे है शक जरा–सा
वो दूर मुझसे जाती
किरदार मेरी जन्नत
मेरे ख्वाब मे ही आती,


वो किरदार तुम हो शायद
जो मुझको है लुभाती,
वो किरदार मुझे बढ़ाती
मुझे जीवन जीना सिखाती!


Thursday, 2 February 2023

कड़ा –ढीला

हर ढीले को 
कड़ा करना है,
रुका हुआ है
आगे बढ़ना है,
दर्द मे लानी है
खुशी ढूंढ के,
आवाज उठानी है
हमे चुप्पी तोड़कर,
देखना है करते हुए
कुछ देखते हुए करना है,
हमे कुछ खत्म बातों के
आगे भी कहना है,
याद उनको करना है
जो जा चुके हैं दूर,
बात उनसे बढ़ानी है
जो हमसे बहुत दूर,
उनके काम करने हैं
जो कह दिया है बस,
उनको भूल जाते हैं
जिनसे वास्ता बरबस,
कड़े से ढीला
और ढीले से कड़ा,
हमे बदलाव चाहिए,
या फिर राम चाहिए?

अवसाद

कल सुबह
फिर सूरज उगेगा,
कल फिर 
बूंदें बरसेंगी,
कल फिर
झींगुर गाएगा,
कल फिर 
हम गुनगुनाएंगे,
हमे फिकर आज
इस बात की है बहुत,
कल कल कोई बात 
दिल से लग जायेगी!

Wednesday, 1 February 2023

दिलकश

हमपर नाज़ है तुमको
तुमपर फक्र करते हैं,
रुहानी नवाह होती है
तुम्हारा जिक्र करते हैं,

आंखों मे समंदर है
लबों पर अनगिनत किस्से,
तुम्हे छोड़ा जहां पर था
वहां पर और थे बंदे,

हमें गमगीन करने की
बहुत साजिश करी होगी,
निखरते और लगते हैं
नूर से दिल जलाकर अब,

हुआ थी तरबियत मे
रोशनी की इस कदर बातें,
अंधेरों के घरों मे भी
उजले आज भी हैं हम,

राहें बेज़ार थी
खुले दहलीज़ से जब हम,
हमको कम बहुत आंका
की कोठियां अब हमारी है,

दर्द–ए–जख्म थे लाखों
अब मरहम लगाते हैं,
हम महरूम हो बैठे
किसी का घर सजाते हैं!

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...