तुमपर फक्र करते हैं,
रुहानी नवाह होती है
तुम्हारा जिक्र करते हैं,
आंखों मे समंदर है
लबों पर अनगिनत किस्से,
तुम्हे छोड़ा जहां पर था
वहां पर और थे बंदे,
हमें गमगीन करने की
बहुत साजिश करी होगी,
निखरते और लगते हैं
नूर से दिल जलाकर अब,
हुआ थी तरबियत मे
रोशनी की इस कदर बातें,
अंधेरों के घरों मे भी
उजले आज भी हैं हम,
राहें बेज़ार थी
खुले दहलीज़ से जब हम,
हमको कम बहुत आंका
की कोठियां अब हमारी है,
दर्द–ए–जख्म थे लाखों
अब मरहम लगाते हैं,
हम महरूम हो बैठे
किसी का घर सजाते हैं!
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