Tuesday 31 January 2023

बसंती


अब बसंत आई है
हवा से साफ कर रही
दिलों के मैल पत्तो–सी
जमा के सुर्ख कर रही,

जोड़ों को जमाकर और
सुखाकर होंठ को बरबस,
पहले मुस्कुराने के
हमें बेज़ार कर रही,

कुछ बात है की बसंती
हमे पता नहीं है क्या?
त्यौहार है शायद
कुछ छुपा रही है क्या?

बसंती पेड़ की झुरमुट को
बेसन–हल्दी रगड़ती है,
कोयल की कूकों मे
पिया का नाम लिखती है,
हरा कुमकुम लगाती है
हया को तंग करती है,

हवा के ठंड झोंखो से
कड़ा–सा कर रही है वो,
पोरों के भी अंतर से 
रज कण धो रही है वो,
दुल्हन के बदन को आज
कोरा कर रही है वो,
बसंती आज बाली को
अब सयान करती है,
उघारे अंग की टहनी
लेप मिट्टी से करती है,
गौरी को नहला–धुलाकर 
कली से पुष्प करती है,

कुछ बरसात की बूंदे
उठाकर शर्द से लाई,
कश्मीर मे केसर 
भींगाकर रंग ले आई,
बसंती ज़मीन को तर कर
हवा मे गंध ले आई,
मेघ के श्वेत दर्पण को
उड़ाकर संग ले आई,


गौरी–शिवा के मिलन पर
लिख नई कविता,
शूलों को किनारे कर
हाथ मृदंग ले आई,
भस्मालिप्त जटाएं खोल
हर–हर गंग ले आई,
गुफाएं खोल योगी के
रास के ढंग ले आई,

आदी योगी के पगों मे
बांधकर घुंघुरू,
तांडव मे मिलाया लस्य
हृदय मे रंज ले आई,
त्रिलोचन भेदकर 
प्रणय के सुमन को सींचा,
रुद्रावतार त्रिपुंड हटा
चारू–चंद्र ले आई,

राधा के बुलाने पर
किशन को वृंद ले आई,
जानकी के स्वयंवर मे 
स्वयं रघुनाथ ले आई,
कैलाश मे विस्तृत को
अस्सी घाट ले आई,
पशुपतिनाथ, अमरता को
वरुणा पार ले आई,
बसंती गौरी को वरने
स्वयंभुनाथ ले आई,
जगत–जननी बिहाने को
काशी–विश्वनाथ ले आई,

नई तुरपायियां कर पीठ
नंदी–पीठ पर रक्खा, 
कंठ का हार बनने को
शेष–भुजंग ले लाई,
तिलक कर, कर दिया ठंडा
नाग मे उमंग ले आई,
लड़ाकर विष समूचे विश्व का
तन कर दिया नीला,
पिसाचों को बराती कर
जरा–सा व्यंग ले आई,

जीवन की सियाही मे
कलम को रात भर रक्खा,
पेड़ों पे, कंखियों और
लता के तार कसती है,
बसंत की सुर्ख़ ख़ुशबूओं को
फ़िज़ा में गुलज़ार करती है, 
तनिक सी लालिमा दिनकर की
हृदय आभार करती है, 
नव पल्लव पुष्प लड़ियों से
धरा के सहज़ उपवन का,
बसंती…..माघ बेला में
अलंकार करती है, 
साज़-शृंगार करती है,

गौरी–अंबर के मिलन पर
स्वांग करती है,
नीलांबर–भवानी परिणय
का वो प्रचार करती है,
हवा की मुरली से
राधा को बेकरार करती है,
वीणावादिनी को पंचमी पर
शब्द अर्पित कर,
बसंती पुष्प–वाटिका मे
मिलन की लाज रखती है,
रघुवर और सिया के
पंथ पर बहार रखती है,
शिव–धनु भंग होने का
बस इंतजार करती है,
बसंती पचकोश कर
शिवरात्रि का आधार करती है!🙏

4 comments:

  1. Anonymous11:58

    अद्वितीय एवं आभायुक्त!

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  2. Anonymous11:59

    कुछ चंद पंक्तियाँ मैं भी जोड़ना चाहूँगी….

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  3. आपके मधुर शब्दों मेरे हृदय उपवन मे बसंत का आगाज कर दिया!🙏🧚

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  4. Anonymous16:10

    आतिशयोक्ति….

    आध्यात्मिक रस से ओत-प्रोत इस कविता में ऋतुराज वसंत का जीवंत वर्णन है, जो इस ऋतु से जुड़े सभी ख़ुशनुमें राग का आलाप करते हुए उत्साह और उमंग से भाव-विभोर हैं।🙏🏻

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