जो होने वाला है,
मै मुस्कुरा कर फिर
चुप हो जाता हूं,
मै हल्की मुस्कान से
सांत्वना दिलाता हूं,
माया के भ्रम को
सरल बनाता हूं,
दर्द की सीमा मे
सेंध लगाता हूं,
अपने इतिहास को
सामने पाता हूं,
अपने भविष्य को
छूकर सजाता हूं,
ज्ञान,अज्ञान और
परम ज्ञान के
अंतर को मैं
समझ पाता हूं,
मै किसी को
जताता नहीं,
तीनों पर मुस्कुराता हूं,
मै ही मै को
बढ़ाता–घटाता हूं,
मैं पर भी मैं मुस्कुराता हूं,
मै चक्र की धुरी पर
खड़ा हो जाता हूं,
मै अपने कब्र को
समेटता उठाता हूं,
मै तुम्हारी मांग को
को फिर से सजाता हूं
मै खीझ जाता हूं
मै कुनमुनाता हूं,
मै फिर मुस्कुराता हूं
अपनी मुस्कान फैलाता हूं!
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