दोष न मेरा,
होश तुम्हें हो
होश न मेरा,
जीवन जीता
ये था प्रतिपल,
पर कुछ पल से
रोष तुम्हारा,
मन री छलिया
क्या कृतघ्न है,
शब्दों के
बुनता है घेरा,
दोष है मेरा
कैसा तेरा,
यह मन कैसा
करता क्रंदन,
जान बचाने
वाला दुश्मन,
अपने शब्दों
की है तपन,
अपने हाथों
करता मैला,
जाकर बैठा
छत्ते ऊपर
पर अब कैसा
है असमंजस
क्यों होता
इतना भी
तूं कृतघ्न,
जिसने पल भर
भी था संभाला,
उसी को देता
अब उलाहना,
मन क्यों गाता
फिल्मी गाना!
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