चलता है मिट्टी के ऊपर
मिट्टी गिरती इधर–उधर
मिट्टी के घर, रहता वो पर,
मिट्टी की धर डगर चला चल
आकर बैठा भी मिट्टी पर,
मिट्टी पर एक और परत धर
मिट्टी से डरता धरता पग,
मिट्टी मे जब ही मेरा घर
तो क्यों मिट्टी को धरता भर कर,
मिट्टी पड़ी है मन के ऊपर
मिट्टी मे धूसरित होता मर!
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