और पत्तों की छानी धूप,
अढ़ाईया की जली आग
बदली मे छुपी धूप,
नानी के घर का आंगन
ठहाकों की उठी गूंज,
चाय का बड़ा बर्तन
टोस की लगी भूख,
ठंडा–ठंडा पानी
गुसलखाने की कतार,
सम्मो माई का पेड़
टीने का बना गेट,
रात का सेनुआर
नीम का पेड़,
भोजपुरी वाला बुधिया
‘नदिया के पार’
मैदान की घास
चश्मे से छीली सब्जी,
नाना से थोड़ी दूरी
बोली की बड़ी सख्ती,
बड़ी छोटी सी थी
मेरी नानी की दुनिया,
मेरे मन मे बड़ी हुई
मेरी नानी की तश्वीर!
No comments:
Post a Comment