वो पढ़ती है मेरी कविता
और मुस्कुराती है,
वो सुनती है
मुझसे सबकुछ
और बहुत कुछ बताती है,
किरदार मेरी आदतों–सी
ढल जाती है,
मेरी चलती चाक पर
मूर्ति बनती है,
मेरे गांधीजी की पूजा
मुझसे ज्यादा करती,
मेरे शहर कि नदियों पे
मेरे संग किनारे जाती,
मेरी गीत लिखकर
मुझसे ही लय मिलाती,
श्वेत–वर्णी, कोमल
वीणा मधुर सुनाती,
हंसती खेलती है
वो मुझसे जुबां लड़ाती,
वो मुझसे नज़र मिलाती
वो मुझको बहुत चिढ़ाती,
वो मेरी नज़र मे देवी
वो मेरा है सर झुकाती,
वो लिखती है खत मुझे
मुझे पूरा करे वहां भी
मुझपे है शक जरा–सा
वो दूर मुझसे जाती
किरदार मेरी जन्नत
मेरे ख्वाब मे ही आती,
वो किरदार तुम हो शायद
जो मुझको है लुभाती,
वो किरदार मुझे बढ़ाती
मुझे जीवन जीना सिखाती!
No comments:
Post a Comment