क्या तुम भी
बनारस मे रहते हो
वहाँ गँगा माँ को
जानते हो,
वहीं काशी विश्वनाथ हैं
वहीं हर-हर महादेव हैं
वहीं बहती है वरुणा
वहीं फैली है अस्सी
वहीं धूप निकलती है
गङ्गा उस पार से
वहीं संकट-मोचन हैं
वहीं काशी के कोतवाल भी
क्या वहीं पर कहीं
तुम भी नहाते हो?
कहीं तुम भी वहाँ
मुक्ति को कण्ठ लगाते हो?
वहीं थोड़ी सी ज़मीन है
तुम सर लड़ाते हो?
किसी के लिए
तुम रास्ता हटाते हो
किसी और की दीवार पर
घर उठाते हो
विश्वनाथ के धूल मे
विश्व क्यूँ बनाते हो?
वहीं थोड़ा-सा आसमान है
उसपर नज़र गड़ाते हो
कोई अप्सरा है गली मे
तुम लुभाते हो
अब कितनी जातियों को
खुद पर सजाते हो
विश्वनाथ को ही
ओढ़ पाते हो?
तुम बनारस मे
मानस गाते हो
गुनगुनाते हो
या कुछ छोटी-छोटी
बातों पर लड़-कट जाते हो
बनारस कि गलियों मे
किस तरफ घर बनाते हो
तुम बनारस मे ही रहते हो?
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