उसमे सुअर लोटा है,
सूअर बड़ा आज़ाद है 
पूरा उसका राज्य है,
वह कीचड़ मे ही खा लेता 
वह कीचड़ मे ही नहा लेता,
कीचड़ मे ही हग देता
कीचड़ से ही लग लेता,
कीचड़ को बिछा लेता 
और कीचड़ को ओढ़ लेता,
कीचड़ को सूंघते वाला 
कीचड़ को वो पा लेता,
मानव सुअर की भाति
खोजना चाहता आजादी,
चरण छोड़कर हनुमत का 
गले बांधता बर्बादी,
बाहर-बाहर भटकाती
यह शरीर है अकुलाती,
मृग-मरीचिका दौड़ाती
राम नाम ठौर दिलाती 
रघुनाथ हृदय की आज़ादी!
 
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