संकल्प होता सिद्ध
बाबा विश्वनाथ के नाम से
संकल्प होता सिद्ध
राम के गुणगान से,
संकल्प थे गैरों के भी
काशी रहे काशी नही,
संकल्प थे औरों के भी
की आए नही दलित कोई,
पर काज सियावर–राम का
जो हनुमान लला से सिद्ध हुआ,
धर्म की संस्थापना जो
गांडीव से समृद्ध हुआ,
संकल्प है प्रारब्ध हेतु
राम काज की राह मे,
सिद्धि है आरंभ हेतु
राम राज की चाह मे,
संकल्प हो अब और भी
की चांद पर जाए कोई,
संकल्प हो अब यह की
भूखा अब नही सोए कोई,
संकल्प हो की हर कदम
अब देश पर कुर्बान हो,
देश ही हो मन–कर्म–वचन मे
जब तलक ये जान हो,
कोई भी ना हो बेआबरू
कोई स्कूल फिर न छोड़ दे,
हर बेटी जो भी जन्म ले
वो जिंदगी भी जी सके,
कोई मां की न हो मृत्यु–सय्या
जन्म देते ही समय,
ना कुपोषण छू सके
किसी अबोध को बनकर प्रलय,
संकल्प हो और ध्यान हो
भगत, बिस्मिल की वजह,
संकल्प मे ही मिल सके
सबको जीने की वजह,
संकल्प मे ‘बापू’ बसे हों
आखिरी कतार मे,
संकल्प मे ‘बाबा’ रमे हों
संविधान की छांव मे।
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