कुछ कहने भी सुन लो
वो जो कहता है कहने वाला
उसको भी गुन लो
उसकी भी मिट्टी
बहुत लटपटी है,
उसकी की हसरत
बहुत–सी दबी है,
उसने भी तकिए
भिगाए हुए हैं,
उसने भी चेहरे
छिपाए हुए हैं
उसको पड़ी है
तुम्हारी हंसी की,
जो झेला है उसने
उसी से लड़ी है,
पर नहीं चाहती की
लड़े फिर से कोई,
दरवाजे–से बिरा के
बढ़े फिर से कोई,
बस इसी मायने मे
तुम्हे कह रही है
उसकी घुटन को
खुला आसमान दो,
अपनी कुछ दबा के
उसकी ही सुन लो।
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