Wednesday, 29 December 2021

रत्ती

रत्ती भर की 
खुशी के लिए,
कुछ और कमाना बाकी है,
उनसे मेरी बात हो चुकी
पर उनसे मिलना बाकी है,
फोन तो उनको किया था मैंने
इस बार उठाना बाकी है।

बंगला मैंने बना लिया है
गाड़ी मैं बहुत बड़ी ली,
पर उसमे भरना सात समुंदर,
और रत्न–धन खान,
आसमान की सैर पे जाना
और फिर आना बाकी है,
हंसी ठहाके कभी लगाए
पर जश्न मनाना बाकी है।

फूल तोड़कर लाया हूं मैं
उन्हे चढ़ाना बाकी है,
तितली को देखा है उड़ते
मुझको उड़ना बाकी है,
मैंने कोयल सुना है बैठे
मेरा गाना बाकी है,
इतना पढ़ना खतम हो गया
उतना पढ़ना बाकी है,
मुझको मेरा मीत मिल गया,
उसमे भी कुछ बाकी है,

राम नाम को मंतर जाना
‘बापू’ का जंतर भी माना
उसे देखकर रोने वाली
फितरत जाना बाकी है,

मैंने किलकाली मार बहुत ली
दिल का हंसना बाकी है।



No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...