तुम चली गई तो खुशी का
रिवाज़ भी चला गया,
हंसना, गाना, खेलना
नाचना भुला गया,
शाम को गली–गली
घूमना चला गया,
साइकिलों से राह तेरी
टटोलना चला गया,
चली गई सुबह की ठंड
रजा़यियों की आड़ मे,
अब हवा है जोहती बस
दरवाजों के पास मे,
चली गई मुस्कान मेरे
चेहरे की नई–नई,
हंसी, ठहाके गूंजते
गम जो मिटाती गई,
चले गए हैं डर को मेरे
थामते जो हाथ थे,
चले गए वो पांव भी
जो चलते मेरे साथ थे,
चली गई मिठास मेरे
चाय की भी साथ मे,
गोलगप्पों का तीखा वाला
ज़ायका भी बात मे,
चला गया वो शादियों का
शोर–गुल तमाम ही,
पहचान मेरी बन गई
तुम्हारे साथ–साथ ही,
तुम भी चली गई
और वक्त भी चला गया,
खुशी का वाकया मेरा
तुम्हारे संग गुजर गया।
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