करने को आतुर
सभी को पड़ी है,
करता हुं मै वो या
करते हैं सब जो,
जो करता है कोई
दिन–रात लग के,
या करता है जो कोई
औरों से छुप के,
खेलता है जो कोई
मिलकर सभी से,
या बैठा है जो कोई
सबसे झगड़कर,
बोलने वाला सबको
जो आगे बताए या
चुप बैठा साधु
जो न पलके हिलाए,
हिमालय पे बैठा
जो सब देखता है,
या नगर मे विचरता
जो भिक्षु बना है,
जो है मुस्कुराता
सभी को देखता है,
या प्रलय–नेत्र खोले
जो सब भेदता है,
राम काज में लगा है कौन
राम हृदय में बसा है कौन
कौन है जिसमे राम नहीं हैं?
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