लपट के पकड़ को पकड़े देखा
लसर–लसर जब
बहुत हो गया,
चाट–चाट कर
लड़ते देखा
इधर घुमाया, उधर घुमाया
पर मै पकड़ छुड़ा न पाया,
उसको जितना दूर भगाया
और जबर से लपटे पाया,
उसको पता थी
बहुत–सी बातें,
खुचर करने की
सारी चाहतें,
उसको जब–जब
जो समझाया,
उसमे नुक्ता
उसने बताया,
पर ज्ञान को जब मै
नमन किया तो,
उसने पीछे
हाथ हटाया
जब दूर हो गया
मै थोड़ा–सा,
उसको मैने
पीछे पाया।
मैने उसमे
खुद को देखा,
मै था वो तब
जैसा देखा,
मन की गति है
बचने वाली,
बैठ के बातें
करने वाली,
उसको किसने
कब समझाया,
मन तो है एक गुड़चुंटा
उसने भी गुड़चुंटा देखा।
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