तुमसे इश्क करने वाला
कल न आया कभी
ढूंढते तुमको यूं
तो किसकी इबादत की
तौहीन करके
तुम खुद को वफ़ा की
संगेमरमर कहोगी?
किसकी शिकायत करोगी
खुद से लड़कर
किसकी नज़र मे
खुद को ऊंचा कहोगी,
भूल जाओगी किसके
मखमली बातों को
किसकी तंगदिली को
नुमाया करोगी?
किसको कहोगी
की फोन न करे
किसको फेसबुक से
हटाया करोगी
किसकी तुम खुशी को
उसी की समझकर
तुम जलने लगोगी
कसमसाया करोगी?
जिससे तुमने चाहा है
बेहतर किसको
जिसकी तुम मुहब्बत को
खुद पर चाहती हो !
उसको बनाने को
बेहतर उसी से
किसे तुम हर बखत
आजमाया करोगी?
कल न पागलों–सा कोई
तारीफ कर दे,
कोई तुमको हंसाने को
दो जहां एक कर दे,
किसे गालियां तुम
जी भर के दोगी,
किसको गाहे–बगाहे
झांक लोगी निकल के
किसको तुम मुहब्बत से
नफरत करोगी?
बीत जायेंगे दिन
चार ये भी
चार दिन मे,
चार किस्से जुटाकर
चार दिन तक कहोगी,
चार नाखुश रहोगी
चार दिलफेंक होगी
पर जब वफा की
तारीफ होगी
तो किसे याद कर
आंख को नम करोगी?
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