Saturday, 6 November 2021

माता मंथरा की दीवाली

माँ मंथरा प्रसन्न चित्त
राज धर्म कर रही,
राम मिले आजभर
विदा उन्हें कर रही –

"वलकल वस्त्र पहन लो राम,
सीता को संग ले लो राम
लक्ष्मण भी संग जायेगा
साज तिलक सब तज दो राम,

वन मे रहोगे चौदह–साल
देखोगे भारत का हाल
मुनि–तपस्वी जानेंगे
वनचर पांव पखारेंगे

केशों को बढ़ने दो राम
कुंजों मे बंधने दो राम
नगर के सुख से वंचित हो
पांव मे कांटे चुभने दो

चेहरे पर मुस्कान रहे
भाई भरत का ध्यान रहे
राजा बन राज्य संभालेगा
जनता में जमने दो राम

तुम मेरे नही तो क्या मतलब
भरत सही, बढ़िया है सब
मां कैकेयी भी तुम्हारी है
वह राज–माता की अधिकारी है

उसको भी खुश कर दो राम
हमको धन्य भी कर दो राम
महल का मान बढ़ाएगी
ख्याति जग तक पहुंचाएगी

भरत–सा राजा क्या होगा
दशरथ का अनुचर क्या होगा
युद्धों मे नाम कमाएगा
प्रजा रंजन में लग जायेगा

हम महल मे दीप जलाये
खुशियाँ खूब लुटाएंगे,
भरत करेगा राज मगन
हम उसके चारण गायेंगे !"

राम ने कहा "तथास्तु!"
मनोकामना तुम्हारी पूरी हो,
आनंद को त्याग कर सुख भर लो
माँ, राम से तुम ही धनी रहो,

जग ने मांगा था राम का नाम
तुमने मांगा राम का धाम,
भरत करेंगे राम का काम
भावना मनुज की उसके नाम,

मै चला भ्रमण के पथ पर
राज करो तुम जी भर के !

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