नग्न हो तुम
नग्न हो तुम
राम के दरबार में,
तुम थे सुसज्जित
मोह से,
अंकुश बहुत से
साथ लाए थे,
आडंबरो की भीड़ मे
खुद को भुलाए थे
अब तन के
पट को त्यागकर,
हो गए निर्वस्त्र
काम–क्रोध–लोभ से
जो पनप रहे थे,
पहचान मे छुपकर
चिपके हुए थे आवरण से
‘मै’ बड़ा बनकर,
अब मग्न हो तुम
मग्न हो तुम
राम के दरबार मे,
जब नग्न हो तुम
नग्न हो तुम
राम के सत्कार मे!
No comments:
Post a Comment