Monday 15 November 2021

बैर का पेड़

जिस रास्ते पर
चलते थे,
खेलते थे, खाते थे,
जिस रास्ते पर
कर के टट्टी,
हम लज्जा में मुस्काते थे,

उस रास्ते पर आज है
बहुत फैला पेड़,
वह रास्ते पर आज फलते
मीठे–मीठे बेर,

यह बैर का जो पेड़ है
यह कब लगा और बढ़ गया,
कब से हमने छोड़ दिया
रास्ते पर निकलना,

कब दिलों की बैर हमने
राम के घर में रखा,
कब–से हंसना–मिलना
गुनाह ही समझ लिया,

बैर का पेड़ उग आया है
अपने आप ही, 
कांटे बिछाकर राह मे
फल लगाता मीठे ही!

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