तन के मंदिर धाम मे,
यह बवंडर है बड़ा–सा
विचारों के संग्राम मे,
यह बवंडर तन का लेकर
उड़ चला है, धूल–सा,
यह बवंडर एक तरफा
एक गया है भूल–सा,
यह बवंडर मै पे सज्जित
मै ही इसके अश्व हैं,
यह बवंडर है हवा–सा
सिर ना इसके पैर हैं,
यह बढ़े तो और को
करने ही लगता पददलित,
यह बवंडर आइना–सा
खुद को देखे हर जगह,
खुद को पाए न कभी जब
यह बड़े आवेग मे,
खुद को करता है ये लज्जित
स्वर्ग के ही द्वेष मे,
स्वर्ग इसका है मनस मे
उसको ढूंढे स्वर्ग मे,
राम रखकर यह हृदय का
राम ढूंढे देश मे,
कब थमा है यह बवंडर
जो सत्य से ही दूर है,
यह पड़ा है कल्पना मे
मद मे अपने चूर है,
राम की बयार इसको
ला सकेगी धरा पर,
यह राम खुद मान बैठा
क्या नाम ले यह राम का?
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