सब बात ही ख़तम,
पढ़ते-पढ़ते हो गए 
ज़ज्बात ही ख़तम,
क्या जाने उसके बारे मे,
क्या ही उसको बूझे 
क्या हम खाना-पानी पूछें 
क्या पाए साथ निभाने मे?
अब बिना बात के 
मिलने के,
दिन रात भी ख़तम,
अब लगा ठहाके 
हँसने के,
हालात भी ख़तम,
अब उत्कल के 
दरिया मे
उठना बैठना नहाना है 
गंगा-माई जाने का 
इत्मिनान भी ख़तम?
 
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