जो बोलता था
केवल सच,
उसको इतनी
रहती थी फ़िकर,
परीक्षा मे झांकता
नहीं था कभी
इधर-उधर,
मैं जाऊँ उसके गाँव
पहुँच उसके घर,
ढूंढ लेकर आऊँ सच,
उसकी तृप्त आंखों के
कुंडल और कवच,
उसके जैसा हो जाऊँ
स्वच्छंद और निडर,
सादा हो जाऊँ मैं
किसी के भी बातों पर,
रघुबर का आलिंगन पा
बंदर जैसा निश्छल,
बंदर जैसा चंचल!
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