कुछ बढ़ा दूँ काज,
कुछ गिरा दूँ कुर्सी 
कुछ लड़ा दूँ पानी
मैं कूद जाऊँ सीढ़ियाँ 
एक बार में दो-चार,
मैं चला लूँ साइकिल 
तेज कर रफ़्तार,
मैं भी खाना छोड़ दूँ 
थालियों में आज,
मैं बता दूँ साथियों के 
आज सारे राज,
आज कुछ धुआं उड़ा लूँ 
आज मन को छोड़ दूँ,
राम को मन-मंदिर बिठाकर 
आज मन के द्वार खोलूँ !
 
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