कुछ बोल नहीं पाते हैं?
किसे तुम अपना
नहीं जान पाते हो?
किसके बारे में सोच-सोच
तुम मन में घबराते हो?
मुस्कान तुम्हारी फिक्की
चेहरा होता बेनूर,
कौन है कर देता तुमको
बाहर से मजबूर,
कौन-सा ऐसी जिल्लत
जो पहली बार हुयी है?
कौन है वो इल्ज़ाम
जो देर तक लगी रही है?
मन की गली मे राम
तुम कब तक
नहीं पाते हो?
राम की बोली से अलग
राम को कब पाते हो?
धमकी से डर जाते हो!
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