तुम और चंचल,
तुमपर ढ़की 
गुलाबी जलन,
आँखें देखती नहीं 
मेरी आँखों को सीधी,
किसी और का वसन
कहीं और ही है मन,
ये अलग चुभन 
ये सतत अगन,
ये तेरी-मेरी लगन
गलत-सही का दर्पण,
टूटता है तन 
टूटता कई बार,
आज फिर चला
औरो के अपने द्वार,
अब खिड़कियों 
की रोशनी ही
कर रही गुलजार,
छोड़ आए 
हम बगीचे,
फूल और बहार,
हम छोड़ आए चाँद 
छत पर बादलो के हाथ,
हम छोड़ आए हैं 
तुम्हारा साथ, तुम्हारा हाथ!
 
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