बहुत से अब ठिकाने हैं
की अब वापस कहाँ जाएं
हमारा घर कहाँ पर है?
उनका नाम ले लेकर
खुद को अब नहीं पाते,
हवा छूकर बताते हैं
उनका शहर कहाँ तक है?
कत्ल करते हैं
खामोश रहकर जो,
इशारों से बताते हैं
घुसा खंजर कहाँ तक है?
मेरी फितरत ही ऐसी है
की हम मदहोश रहते है,
पता हमको नहीं चलता
हुस्न का मंज़र कहाँ तक है?
कभी जो आजमाना तुम
हमारी दोस्ती चाहो,
तो हमारा नाम ले लेना
देखो डर कहाँ तक है?
खुदा को सजदा मे
कहीं गर्दन झुका लेना,
ना खोजो तुम कहाँ पर हो
उसका दर कहाँ पर है?
बहुत फांका किए, रोज़ा रखा
दरगाह भी घूमें,
अभी इक उम्र बाकी है
मेरी ग़ुस्सा जहाँ तक है?
हमारा ज़िक्र करके तुम
सुर्खी लूट लेते हो,
तुम्हें इतनी शिकायत है
मेरी शोहरत कहाँ तक है?
हमें तुम बात मे अपनी
हँसकर टाल जाते हो,
हमें मालूम है लेकिन
तुम्हारी नज़र कहाँ पर है?
बहुत आँखें चुराते हो
हमारे राह आकर तुम,
देखेंगे मुंडेरो से
हुयी रुखसत कहाँ तक है?
अजि नाराज़ होते हो
तुम्हारा नाम लेते हैं,
तुम्हें मालूम पूरा है
मेरी सिद्दत कहाँ तक है?
बड़े बेवक्त आए हो
हमें रुखसत अदा करने,
दरिया आंख से निकला
और अब बढ़कर कहाँ तक है?
हमें मत भूलना
गर कभी मायूस हो जाना,
मेरा कंधा यहाँ पर है
तुम्हारा सर कहाँ पर है?
तुम्ही से प्यार कर हमने
खुदा तक रास्ता देखा,
मोहब्बत और इबादत में
कहो अन्तर कहाँ तक है?
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