Saturday 31 July 2021

गिलहरी

गिलहरी दाना खा रही है
बैठी नीम के पेड़ पर,
निगल रही है, कुतर–कुतर,
गिरा–गिरा, कुछ कुतर–कुतर।

धूप आ रही छनकर,
पत्तों से कुछ निथर–निथर,
आंख–मिचौली करती,
छुपती–दिखती निखर–निखर।

पर मनुष्य है अब भी सोता,
भुला–भुला कर धूप शहर,
अस्त–व्यस्त है, बहुत मस्त है
जमा–जमा कर, भरकर घर।

कोरोना माता आई दिखलाने आइना,
जाता मानव तू क्यूं न सुधर,
यह घर है हम सबका मिलकर
नही तुम्हारा बस अधिकार।

जब भी भरे पाप का मटका
तुमको भरना होगा कर,
यही है संदेश सुनाती
गिलहरी डाल पर उछल–उछल।

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