Saturday 31 July 2021

दहेज

दहेज को लेकर
हो गई आज फिर एक हत्या,
वो सहकर, कहकर मर गई
जो आई थी बंगला–मोटर,
जमीन लेकर–एक एकड़।

कोई कहता पुलिस बुलाओ,
कोई कहता दो अधिकार,
कोई कहता जनसंख्या घटाओ
कोई कहता योग–ध्यान कर,

किसी को फिल्मों की 
अश्लीलता पर डाह है,
कोई लोकतंत्र की आजादी
करता तिरस्कार है,

कोई कहता जाति–पाती के
बंधन से तो मुक्त करो,
करने दो शादी बच्चों को
अपनी मर्जी से चुनकर,

जो बेच रहे है घर, मकान को
देने को दहेज बड़ा,
जिनका मुंह खुलने में लगता
वक्त भी नही ज्यादा–थोड़ा,
उनको जेल मे डाले कोई
लालच जिनका बहुत बड़ा।

कोई समाज मे महिलाओं को
नौकरी पेशा देना चाहे,
कोई पुरुषो से बच्चो को
पैदा करवाना चाहे,

उलट–फेर, करने–करने से
शायद सारी बच जाए,
पर दहेज की बेदी तब तक
जाने कितने चढ़ जाए,
और खून सने बिस्तर पर
कितनी ही बेटी सो जाए।

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