Monday, 30 August 2021

हिम्मत

हिम्मत आ गई है अब,
तुम्हारे बात करने से।

कुछ का कुछ 
तुम कह देती हो,
कुछ मतलब के मतलब
कह देती हो,

कुछ वाकया सुनाती हो
जग भर के,
कुछ अपनी कहती हो
लड़ने–भिड़ने के,

तुम जैसे सबसे
अड़ लेती हो,
बिना कहे भी
समझ लेती हो,
मै हँस देता हूं
लगा ठहाके,

की दूरी ढह गई है अब,
तुम्हारे हाथ धरने से।



Saturday, 28 August 2021

बहाने

थोड़े करके बहाने,
कुछ इल्ज़ाम लगाकर के
मन तू खुद को बहला ले।

कुछ लोगों से हो जलन बहुत
कुछ लगे बहुत आगे की बात,
कुछ अपने पैमाने तुमको
जो लगे बहुत छोटी औकात,
तो अपनी हसरत की चादर
तू ओढ़–बिछाकर सुस्ता ले।

उसका हुआ तो उसका है
उसकी मेहनत बढ़कर है,
उसकी रातें बिन नींद गई
उसने खेल नहीं खेले,
उसकी किस्मत की चाभी
तू उसको देकर, अपना ले।

मन तू खुद को बहला ले।
तेरी बारी आएगी,
यह जान जरा तू मुस्का ले,
मन तू खुद को फुसला ले।


Friday, 27 August 2021

याद

क्या तुम भी
मुझे याद करते हो,
मेरे आखिरी बात के बाद?

मेरा जिक्र किसी से करते हो,
कुछ भूली–बिसरी याद के साथ?
कल नाम तुम्हारा लेकर मै
जब आंसु छलका बैठा था,
क्या तुमको हिचकी आई थी
सोने के पहले, शाम के बाद?

क्या याद तुम्हारी ताजी है,
जब हमने movie देखी थी
क्या वो लम्हे हैं याद तुम्हे
जो हाथ पकड़ हम चले थे साथ?
क्या नशे की करते बात कभी,
हंसते हो अब भी, खुलकर?

पहचान

मै छुप जाता, तुम्हे देखकर
गर तुम सामने से ना आ जाते।

मै तुम्हे देखकर, डर जाता
और बात बनाने कुछ लगता,
मै सोच पुरानी खो जाता
जो तुम्हारे साथ मे कड़वे थे,
मै कहते–कहते चुप जाता
जो तुम बात शुरू खुद न करते।

मै भीड़ का हिस्सा ही रहता
जो नाम हमारा ना लेते,
मै दोस्त भी तुमको ना कहता
जो आकर गले ना मिल जाते,
मै नज़रे नीची कर लेता,
जो 'आप’ मुझे तुम ना कहते।


Tuesday, 24 August 2021

तुम फोन पे भी चुप रहती हो !

आज फिर तुम्हारा जन्मदिन है
मैंने आज फोन भी नहीं किया!

अब तुम फोन उठाकर भी
चुप हो जाती हो,
कुछ कहती नहीं हो
पर चीर–हरण–सा कर जाती हो।
आजमाती हो धीरज को,
मेरा नाम मुझे सुनाती हो।

मैंने वो कह दिया
जो थी अनकही,
जो था कहना नहीं
पर जानते हम थे ही,
कुछ गाहे–बगाहे
बात हो जाने पर,
टालने के लिए
तुम उफनती भी थी,
अब इस तर्क को तुम 
भुनाती तो हो।

वक्त बहुत हो चुका है
की दुनिया की सोचे,
कुछ अफगानिस्तान की
कुछ सरकारी चोचे,
कुछ याद करें हम
सड़कों की मुलाकात,
कुछ तुम्हारी पढ़ाई
कुछ रस्मों–रिवाज़,
कुछ घर के झगड़े
कुछ पलटते किताब,
क्यों धूल तुम जमी है
हटाती नहीं हो?

तुम्हारी नई नौकरी पर
बहुत खुश तो होगी,
उधार की जिंदगी
अब नही जीती होगी,
घूमती–खाती होगी
और खर्च उड़ाती होगी।

बड़ी–सी कोई
Teddy bear ले लेना,
बिठा गोद मे,
अब उसी संग सोना,
अब दवा–दारु भी
थोड़ी ज्यादा पी लेना,
JNU मे नहीं
अब AIIMS मे भर्ती लेना,
बंगले खरीदना, गाड़ी चलाना
पापा की परी तुम 
किराए का घर छोड़ देना

अब अलग जिंदगी है
और से बात करना,
अलग–सी बात करना।

खुशबू वाला साबुन

आप तो खुशबू वाले
साबुन से नहाते हैं,
आप हमारा दर्द
क्या जानते हैं,

आप के बच्चे लंदन
मे पढ़ने जाते हैं,
आप इन स्कूलों मे
बस झंडे फहराते हैं,

आप के घर की सड़क 
मंदिर तक पहुंचती है,
बाजार आपके घर
दौड़ कर आते हैं,

गटर के पास से
सीसा बंद कर गुज़र जाते हैं,
आप हमसे बच कर
खुशी मनाते हैं,

आप हमारी बाजार की चीख
घर की चारदीवारी में सुनाते हैं,
हमारी चीखों को 
आदत बताते हैं,

फिर खुशबू वाले 
साबुन से नहाकर,
सब भूल जाते हैं,
खुशबूदार हो जाते हैं।

Monday, 23 August 2021

प्यादे

कोई करनी से वजीर बना,
चला इधर से उधर,
दौड़कर, भागकर,
तिरछे, सीधे,
कदम बढ़ाकर
छोटे–बड़े।

कुछ रख गया पीछे
छोटे प्यादे,
धीरे–धीरे चलते,
देने को कुर्बानी
तत्पर खड़े,
वो जो बन जायेंगे
कभी वकील, दलील देकर,
और कभी मंत्री
शपथ लेकर,
कभी रटकर किताबें
जज, प्रोफेसर।

रहेंगे बंगलो मे
नवाबों के कॉलोनियों मे
यमुना के किनारे,
शाहजहां के बैठ बगल,
देखेंगे मुजरा
नृत्य घोर मगन,
यही बन जायेंगे
रईश, मिलाकर उनसे सकल।

यही प्यादे, पहले
हो जायेंगे अलग,
भीड़ का बन जाएंगे हिस्सा
करके भीड़ की नकल,
कुछ ला पाएंगे परिवर्तन,
विचार मे, बन वो भी बंदर
हमारे जैसे, पर उनसा लगकर।

यही सोच रहे थे बाबा साहेब,
बापू , बिस्मिल और भगत,
जो चले ही गए कर कुछ
और कुछ प्यादों के ऊपर छोड़कर।

Tuesday, 17 August 2021

पिता

मेरे सात बेटे है,
पढ़े–लिखे, सूट–बूट पहने
काम पर जाते
मेरी तरह नहीं की 
जो सड़क पर बोझा उठाते।

नाम है, शोहरत है,
रूबाब है, और इल्म भी,
महल्ले में सानी है
और चर्चे भी है अख़बार मे।

पर आप क्यूं MGNREGA की
मशक्कत कर रहे,
जिस सड़क पर चलना नहीं
उसकी इमारत चुन रहे?

ना चलूं सड़क पर
पर पेट कैसे ये चले?
ना हो रोटी–दाल तो
क्या हम भी भूखे मरे?

बेटे नहीं देते हैं रोटी
की है नही रुपए पड़े,
उनकी शादी को तो अब
हो चले है साल बड़े,
बस जुटा भर है पा रहें
की उनके बेटे भी साहब बने!

समस्या

समस्या क्या है?
जो मन में है,
शरीर के डर के साथ है,
स्मृतियों को उधेड़ती है,
बुनती है नए संभावनाएं,
अच्छी और कुछ बुरी,
मुस्कुराती अच्छी बातों को सोचकर
घबराती काल को पास देखकर!

समस्या ‘मैं’ को झकझोरती
प्रश्न पूछती, धिक्कारती
पर नए आयाम जीवन के
देखती और दिखाती।

कोई शांत रहकर
टाल देता बात 
कल की रात पर,
कोई सुगबुगाता, कुलबुलाता
कोसता है राम पर।

पर राम ले आए हैं समस्या
राम ही का काज है,
जो कर रहे थे वो स्वयं ही
हमसे कराते आज है,
की सोच ले हम वो 
की जो सोचते थे 
है ही नहीं संसार मे!

हम देख ले 
और जान लें
की भेद क्या है
मान और अभिमान मे,
हम बैठ कर हैं पढ़ रहे
कोई लुट रहा अफ़गान मे!


Monday, 16 August 2021

तर्क

तर्क मे रखा है कोई
तथ्य ढूंढकर,
तथ्य मे रहा कोई कर
तर्क की फिकर।

तथ्य तर्क के लिए
जमा किया है,
जीव तर्क को लिए
छुपा हुआ है।

तर्क जो करता जीव
तथ्य के लिए,
हो रहा है जीव गोचर
तर्क के लिए।

शौहार्द्य के संवाद मे
शरीर आगे हो गया,
राम पीछे छूट गया
मिट्टी लड़ता रह गया।

मिट्टी–मिट्टी, अलग–अलग
राम नहीं ध्यान मे,
राम आए सामने तो
तो जुट गया संग्राम मे।

जो लिया था राम से
वह पहचान नहीं पा सका,
राम से ही तर्क किया,
राम नही पा सका।

मूर्ख

बिरबल चले चार मूर्ख ढूंढने,
बादशाह की ख्वाइश पूरी करने।

एक मिला ढूंढ रहा
कुछ तो खोया हुआ,
रोशनी मे ढूंढ रहा
घर में गोया हुआ।

एक मिल गया
सर पर बोझ रखे भारी,
उपर से कर रहा था
एक गधे की सवारी।

एक, लिख रहा हूं मै
जो की लिखा जा चुका है,
पढ़ रहा हूं लिख के
जो की पढ़ा जा चुका है।

एक पढ़ रहा है मेरी
छोटी–सी लिखाई,
कंकड़ों मे ढूंढता है
राम की खुदाई।

Wednesday, 11 August 2021

Adventure

कुछ बोल दिया जो सोचा नहीं,
अब बोल के सोच रहा कब से,
बस बैठे–बैठे, बैठा था
अब आराम नहीं मुझमें।

कुछ जोड़–तोड़ के जोड़ रहा,
कुछ जोड़, तोड़ के बैठा हूं,
कुछ तोड़ के मुद्दे ढूंढ रहा,
कुछ जोड़ के नाम लिखूं कैसे?

जो यहां पड़ा था वहां रखा,
जो वहा जमा था, यहां रखा
जो जमा हुआ है पहले से
उसके बाहर निकलूं कैसे?

सदगुरु की सब बात सही
की खोज खुचर की करता मन,
Adventure करने को उसको
कुछ चाहिए करना इधर–उधर,

राम से भी संग्राम करे
रावण की तारीफें भी,
मन ही तो बड़ा adventurous है,
अपने से खुश रह ले भी।


नाराज़

क्या दिन ऐसा आया है कि,
तुमसे भी नाराज़ रहूं?

मै मन में रक्खू बातों को
अब कहने मे भी लाज करूं?
मै बोलूं नहीं खुलकर कुछ भी
कुछ कहने में संकोच करूं?

मै शब्द के भाव को 
न मे गूथकर,
पहले उसके अर्थ बुनूं?
फिर उनको तुमसे कहने मे
कुछ वक्त रुकूं, 
कुछ–कुछ ही कहूं?

क्या मेरे शब्द भी अब तुमको
बरछी–कटार से लगते हैं?
क्या मेरे कहने के मतलब
कुछ छुपे हुए से दिखते हैं?
क्या खुला हुआ–सा लगने को
मै गुप्त–से माने साथ रखूं?

मै अंतरमन के भावों को
किसके सम्मुख निष्पाप रखूं?
कोई और कहां है तुम जैसा की
जिससे दो पल बात करूं?

राम–राम है सत्य–सत्य
और सत्य ही साथ तुम्हारे है,
जो सत्य–असत्य में उलझा हूं,
मै सत्य की कौन सी राह चूनूँ?

Monday, 9 August 2021

चक्रव्यूह

कभी तलवार, कभी तीर,
कभी भाला, कभी जंजीर,
कभी हाथ, कभी पांव,
कभी मुष्ठ, कभी भाव,
रुद्र–रूप, गदा–संग,
भाज कभी लाठियां,
यदा–कदा शूरवीरों,
की पकड़ के बाहियां,
कर रहा अभिमन्यु
व्यूह–भेदन की क्रिया।

मुखिया

घर का मुखिया कौन है?

वह शराब मे है डूबकर
घर भी डूबाकर, फूंककर,
कर रहा है त्राहिमाम,
काम दो कुछ काम।

चंद रुपए जो कमाए थे
बेटी ने अपनी जान धर,
ले गया वो लूटा आया
ठेके के दीवार पर।

गुसलखाने की दीवारें
छत बिना बेज़ार हैं,
नहाने मे भी है नुमाईश
देखता संसार भर।

अब जोड़ कर कुछ पाइयां
मां–बेटियां छत ढक रहीं,
पीने की खातिर भी रखें है
कुछ दाम भी भर रहीं।

पर समझ की संसार मे
जो बेच बैठा है घर–द्वार,
वो घर का मुखिया है बना
हुक्म करता है बैठा।

अब घर का मुखिया कौन है ?

नुमाइश


तुम क्या पहनती हो
ये चर्चे है बहुत अखबार मे,
तुम खेलती हो क्यूं ढकी–सी
अब खेल के बाज़ार मे।

तुम घरों की चौखटों को
लांघ आई थी निकल,
तब भी बनकर थी खिलौना
देह के व्यापार मे।

तुम फखत बस जिस्म थी 
बोली लगाने के लिए,
वो काट कपड़े, करते नुमाइश
तलब के आसार मे।

तुमको रक्खा सामने जब
बाजार में बिकने लगी,
तुम क्यों मद मे आ गई
की हो भी तुम संसार मे।

‘शीला की जवानी’ थी तुम
और थी सूरत और चाल मे,
प्रेम–चर्चे तब ही हुए,
जब लूट गई बाज़ार मे।

कुछ तो ढक कर रख रहे हैं
महफूज़ पर्दों–हिजाब मे,
कुछ दिलाते अधिकार तुमको
महज़ स्तन ढकते लिहाफ़ मे।

तुम महज़ हो द्रौपदी
बस बट रही संसार मे,
और एक वजह महज हो
महाभारत के यलगार मे।

है राम की अभिलाष जग मे
रावण की राह मे,
इंद्र को जो दे चुनौती
अहिल्या के मान मे।


Saturday, 7 August 2021

Possessive Rape

मर्जी से हो रहें हैं
जाने कितने rape
घरों की चारदीवारी में बंद कर
घुटन कर रही है दम।

उनको सिखाकर उड़ना
कुतर रहे हैं पंख,
लगाकर वस्त्रा–भूषण,
कुछ दिखाकर पंख
कर रहें हैं सौदा
मोटी दहेज रख,

लुभा रहें है ग्राहक,
बताकर गुण अनेक,
बेटी है engineer,
पढ़ी हुई डॉक्टरी,
पर रहेगी आज्ञाकरी
सुनेगी घर पर बैठ,
पैदा करेगी बच्चे
एक के बाद एक।

बेटियां जा रही हैं
एक घर से दूसरे,
ढक कर जिस्म पर्दों में
नत्थी–मांगटीकों में बंधे हुए,
चमचमाते लाल–जोड़ों में सजी !

और किताबों से अलग
करके उनके मन,
जनसंख्या बढ़ाने मे करती
Olympics की race
मान और सम्मान की
संभालती हैं नकेल,
कन्या–दान में मिला जो
पति और ससुर को भेंट
क्यों चढ़ता है फांसी कोई,
जब मर्जी से होता rape?

वह नहीं समझे की होता
Emotional अत्याचार,
Kitchen के अंदर,
कुछ न करना ज्यादा है
बस धमकी है खाने का जहर,
मिटा कर वजूद एक नया लिखना,
जो कर रहा पिता अब पति को करना।

अगर वो निकली अकेली
समाज में पैदल,
हो जाए न कहीं कोई अपशगुन अटल
बाहर का कोई मान क्यूं ले
कर के उनका rape?

क्यूं न हो घर में ही 
बन possessive
करते हुए रक्षा,
Facebook पर डाल फोटो
दिखाकर अच्छा,
कर दें उनका शील भंग
और मर्यादा,
रौंदकर उनकी आत्मा
मारकर इच्छा,
खुशी–खुशी होते रहे
मर्ज़ी में उनके rape !


Thursday, 5 August 2021

कोई और

अब तुम्हारे हंसने पर,
कोई और ही खुश होगा,
कोई और तुम्हारे झोले को
अपने सर पर रख लेगा।

कोई और करेगा इंतज़ार
जब मेट्रो स्टेशन पर बैठोगी,
किसी और के टोपी चश्मे को
तुम बैग में अपने रख लोगी।

कोई और तुम्हारे class के बाहर,
इंतेजार में खड़ा रहेगा,
कोई और तुम्हारी रोटी को
खाकर खतम करेगा।

किसी और के साथ, सड़क पर चल
तुम ’केजरीवाल‘ जिताओगी,
कोई और छोड़ गायब होगा,
तुम गुस्से में चिल्लाओगी।

किसी और के साथ खड़े रहकर
तुम छोले कुल्चे खाओगी,
किसी और का पेट खराब होगा,
किसी और का मजाक बनाओगी।

कोई और तुम्हारी miss call देख
Sorry बोल के बात करेगा,
जब गुस्से से फोन काट दोगी
कोई और ही डरा रहेगा।

किसी और की बातों के मतलब
तुम प्रियांका दी से पूछोगी,
किसी और के चश्मे से छनकर
तुम सारी दुनिया देखोगी।

कोई और ही तुम्हे जलाने को
किसी और से बात करेगा,
जब मुंह लटका लोगी तुम दुख से
कोई और ही तंज कसेगा।

कोई और चलेगा auto से,
साथ तुम्हारे दूर बैठ,
कोई देखता रह जायेगा
जब जाओगी तुम मुंह ऐंठ।

कोई और तुम्हारी जांघों पर
मलहम रात लगाएगा,
कोई और तुम्हारे आंसु को,
नरमी से पिघलाएगा।

किसी और की सुनकर तारीफे,
तुम सांस रोक कर टालोगी,
कोई और तुम्हारी बाँह खींच,
तुम्हे अक्षरधाम घुमाएगा।

किसी और को अलविदा कहने को
तुम metro station जाओगी,
किसी और बाहों मे बसकर,
किसी और की तुम हो जाओगी।


सुधार

तुम सुधर न जाना  बातें सुनकर जमाने की,  कहीं धूप में जलकर  सुबह से नजर मत चुराना,  ठंड से डरकर  नदी से पाँव मत हटाना,  कभी लू लगने पर  हवा स...