Saturday 7 August 2021

Possessive Rape

मर्जी से हो रहें हैं
जाने कितने rape
घरों की चारदीवारी में बंद कर
घुटन कर रही है दम।

उनको सिखाकर उड़ना
कुतर रहे हैं पंख,
लगाकर वस्त्रा–भूषण,
कुछ दिखाकर पंख
कर रहें हैं सौदा
मोटी दहेज रख,

लुभा रहें है ग्राहक,
बताकर गुण अनेक,
बेटी है engineer,
पढ़ी हुई डॉक्टरी,
पर रहेगी आज्ञाकरी
सुनेगी घर पर बैठ,
पैदा करेगी बच्चे
एक के बाद एक।

बेटियां जा रही हैं
एक घर से दूसरे,
ढक कर जिस्म पर्दों में
नत्थी–मांगटीकों में बंधे हुए,
चमचमाते लाल–जोड़ों में सजी !

और किताबों से अलग
करके उनके मन,
जनसंख्या बढ़ाने मे करती
Olympics की race
मान और सम्मान की
संभालती हैं नकेल,
कन्या–दान में मिला जो
पति और ससुर को भेंट
क्यों चढ़ता है फांसी कोई,
जब मर्जी से होता rape?

वह नहीं समझे की होता
Emotional अत्याचार,
Kitchen के अंदर,
कुछ न करना ज्यादा है
बस धमकी है खाने का जहर,
मिटा कर वजूद एक नया लिखना,
जो कर रहा पिता अब पति को करना।

अगर वो निकली अकेली
समाज में पैदल,
हो जाए न कहीं कोई अपशगुन अटल
बाहर का कोई मान क्यूं ले
कर के उनका rape?

क्यूं न हो घर में ही 
बन possessive
करते हुए रक्षा,
Facebook पर डाल फोटो
दिखाकर अच्छा,
कर दें उनका शील भंग
और मर्यादा,
रौंदकर उनकी आत्मा
मारकर इच्छा,
खुशी–खुशी होते रहे
मर्ज़ी में उनके rape !


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