Tuesday 24 August 2021

तुम फोन पे भी चुप रहती हो !

आज फिर तुम्हारा जन्मदिन है
मैंने आज फोन भी नहीं किया!

अब तुम फोन उठाकर भी
चुप हो जाती हो,
कुछ कहती नहीं हो
पर चीर–हरण–सा कर जाती हो।
आजमाती हो धीरज को,
मेरा नाम मुझे सुनाती हो।

मैंने वो कह दिया
जो थी अनकही,
जो था कहना नहीं
पर जानते हम थे ही,
कुछ गाहे–बगाहे
बात हो जाने पर,
टालने के लिए
तुम उफनती भी थी,
अब इस तर्क को तुम 
भुनाती तो हो।

वक्त बहुत हो चुका है
की दुनिया की सोचे,
कुछ अफगानिस्तान की
कुछ सरकारी चोचे,
कुछ याद करें हम
सड़कों की मुलाकात,
कुछ तुम्हारी पढ़ाई
कुछ रस्मों–रिवाज़,
कुछ घर के झगड़े
कुछ पलटते किताब,
क्यों धूल तुम जमी है
हटाती नहीं हो?

तुम्हारी नई नौकरी पर
बहुत खुश तो होगी,
उधार की जिंदगी
अब नही जीती होगी,
घूमती–खाती होगी
और खर्च उड़ाती होगी।

बड़ी–सी कोई
Teddy bear ले लेना,
बिठा गोद मे,
अब उसी संग सोना,
अब दवा–दारु भी
थोड़ी ज्यादा पी लेना,
JNU मे नहीं
अब AIIMS मे भर्ती लेना,
बंगले खरीदना, गाड़ी चलाना
पापा की परी तुम 
किराए का घर छोड़ देना

अब अलग जिंदगी है
और से बात करना,
अलग–सी बात करना।

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