तुम्हारे बात करने से।
कुछ का कुछ
तुम कह देती हो,
कुछ मतलब के मतलब
कह देती हो,
कुछ वाकया सुनाती हो
जग भर के,
कुछ अपनी कहती हो
लड़ने–भिड़ने के,
तुम जैसे सबसे
अड़ लेती हो,
बिना कहे भी
समझ लेती हो,
मै हँस देता हूं
लगा ठहाके,
की दूरी ढह गई है अब,
तुम्हारे हाथ धरने से।
No comments:
Post a Comment