जो मन में है,
शरीर के डर के साथ है,
स्मृतियों को उधेड़ती है,
बुनती है नए संभावनाएं,
अच्छी और कुछ बुरी,
मुस्कुराती अच्छी बातों को सोचकर
घबराती काल को पास देखकर!
समस्या ‘मैं’ को झकझोरती
प्रश्न पूछती, धिक्कारती
पर नए आयाम जीवन के
देखती और दिखाती।
कोई शांत रहकर
टाल देता बात
कल की रात पर,
कोई सुगबुगाता, कुलबुलाता
कोसता है राम पर।
पर राम ले आए हैं समस्या
राम ही का काज है,
जो कर रहे थे वो स्वयं ही
हमसे कराते आज है,
की सोच ले हम वो
की जो सोचते थे
है ही नहीं संसार मे!
हम देख ले
और जान लें
की भेद क्या है
मान और अभिमान मे,
हम बैठ कर हैं पढ़ रहे
कोई लुट रहा अफ़गान मे!
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