अब बोल के सोच रहा कब से,
बस बैठे–बैठे, बैठा था
अब आराम नहीं मुझमें।
कुछ जोड़–तोड़ के जोड़ रहा,
कुछ जोड़, तोड़ के बैठा हूं,
कुछ तोड़ के मुद्दे ढूंढ रहा,
कुछ जोड़ के नाम लिखूं कैसे?
जो यहां पड़ा था वहां रखा,
जो वहा जमा था, यहां रखा
जो जमा हुआ है पहले से
उसके बाहर निकलूं कैसे?
सदगुरु की सब बात सही
की खोज खुचर की करता मन,
Adventure करने को उसको
कुछ चाहिए करना इधर–उधर,
राम से भी संग्राम करे
रावण की तारीफें भी,
मन ही तो बड़ा adventurous है,
अपने से खुश रह ले भी।
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