पढ़े–लिखे, सूट–बूट पहने
काम पर जाते
मेरी तरह नहीं की
जो सड़क पर बोझा उठाते।
नाम है, शोहरत है,
रूबाब है, और इल्म भी,
महल्ले में सानी है
और चर्चे भी है अख़बार मे।
पर आप क्यूं MGNREGA की
मशक्कत कर रहे,
जिस सड़क पर चलना नहीं
उसकी इमारत चुन रहे?
ना चलूं सड़क पर
पर पेट कैसे ये चले?
ना हो रोटी–दाल तो
क्या हम भी भूखे मरे?
बेटे नहीं देते हैं रोटी
की है नही रुपए पड़े,
उनकी शादी को तो अब
हो चले है साल बड़े,
बस जुटा भर है पा रहें
की उनके बेटे भी साहब बने!
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