वह शराब मे है डूबकर
घर भी डूबाकर, फूंककर,
कर रहा है त्राहिमाम,
काम दो कुछ काम।
चंद रुपए जो कमाए थे
बेटी ने अपनी जान धर,
ले गया वो लूटा आया
ठेके के दीवार पर।
गुसलखाने की दीवारें
छत बिना बेज़ार हैं,
नहाने मे भी है नुमाईश
देखता संसार भर।
अब जोड़ कर कुछ पाइयां
मां–बेटियां छत ढक रहीं,
पीने की खातिर भी रखें है
कुछ दाम भी भर रहीं।
पर समझ की संसार मे
जो बेच बैठा है घर–द्वार,
वो घर का मुखिया है बना
हुक्म करता है बैठा।
अब घर का मुखिया कौन है ?
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