चला इधर से उधर,
दौड़कर, भागकर,
तिरछे, सीधे,
कदम बढ़ाकर
छोटे–बड़े।
कुछ रख गया पीछे
छोटे प्यादे,
धीरे–धीरे चलते,
देने को कुर्बानी
तत्पर खड़े,
वो जो बन जायेंगे
कभी वकील, दलील देकर,
और कभी मंत्री
शपथ लेकर,
कभी रटकर किताबें
जज, प्रोफेसर।
रहेंगे बंगलो मे
नवाबों के कॉलोनियों मे
यमुना के किनारे,
शाहजहां के बैठ बगल,
देखेंगे मुजरा
नृत्य घोर मगन,
यही बन जायेंगे
रईश, मिलाकर उनसे सकल।
यही प्यादे, पहले
हो जायेंगे अलग,
भीड़ का बन जाएंगे हिस्सा
करके भीड़ की नकल,
कुछ ला पाएंगे परिवर्तन,
विचार मे, बन वो भी बंदर
हमारे जैसे, पर उनसा लगकर।
यही सोच रहे थे बाबा साहेब,
बापू , बिस्मिल और भगत,
जो चले ही गए कर कुछ
और कुछ प्यादों के ऊपर छोड़कर।
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